दिवाली के छह दिनों बाद आरंभ होता है प्रकृति पूजा का महापर्व छठ

नई दिल्ली।

प्रकृति पूजा का महापर्व छठ की शुरूआत दिवाली के छह दिनों बाद  होती है। व्रती नहाय खाय के दिन नाखून वगैरह  काटकर, स्वच्छ जल से अच्छी तरह बालों को धोकर स्नान करते हैं। इसके बाद बाद नये वस्त्र पहनकर साफ-सुथरे व नई माटी के चुल्हे पर अपना भोजन बनाकर सूर्यदेव को नैवेद्य देकर भोजन करने के पश्चात उसी नैवेद्य को प्रसाद रूप में अपने परिवार के सभी सदस्यों को खिलाते हैं। भोजन में चने की दाल, लौकी की सब्जी और साफ गेहूं की रोटी या चावल बनाया जाता है।

व्रत के दूसरे दिन सुबह से उपवास की शुरूआत हो जाती है। व्रती संध्या बेला में फिर से स्नान कर अपने देवता घर में शुद्धता के साथ गेहूं के आटे की रोटी और चावल की खीर बनाते हैं, जिसके बाद सूर्यदेव को फिर नैवेद्य देकर उसी घर में एकान्त में उसे ग्रहण करते हैं। इसके बाद व्रती अपने सभी परिवार एवं सगे संबंधियों को वही खीर-रोटी का प्रसाद खिलाते हैं। इस प्रक्रिया को खरना कहते हैं।

तीसरे दिन शाम को( सूरज डूबने से लगभग दो घंटे पहले) व्रती के साथ उनका पूरा परिवार नये व साफ कपड़े पहनकर बांस से बने नये टोकरे में छठ पूजा की सामग्री के साथ तालाब या नदी के किनारे पहुंचते हैं। पूजा सामग्रियों में घी, दिये के अलावा प्रसाद रूप में व्रतियों द्वारा बनाए गये गेहूं के आटे का सांच अथवा ठेकुआ रखा जाता है। इसके अलावा कार्तिक मास में खेतों में उपजे सभी नये कंद, मूल, फल सब्जी, मसाले, गन्ना, जिमीकंद, हल्दी, नारियल, नींबू(बड़ा), पके केले आदि चढाये जाते हैं।

पर्व के दिन नदी-तालाबों के किनारे एक मेले का माहौल बन जाता है। घाटों पर छठपर्व के लोकगीत गाने के अलावा व्रती घाट पर आते-जाते रास्ते में गीत गाते हैं।

चौथे दिन सूर्योदय से पूर्व ही व्रती लोग उगते सूरज की पूजा के लिये पहुंचते हैं। संध्या अर्ध्य में अर्पित पकवानों को नये पकवानों से बदल दिया जाता है, लेकिन फल आदि वही रहते हैं। सभी नियम संध्या अर्ध्य की तरह ही होते हैं, सिर्फ व्रती इस समय पूरब की ओर मुंह करके पानी में खड़े होते हैं, और सूर्य उपासना करते हैं। पूजा अर्चना के बाद घाट की पूजा होती है, और फिर प्रसाद बांटा जाता है। व्रती खरना दिन से आज तक निर्जला उपवास करते हुए चौथे दिन की पूजा समापन के बाद नमकयुक्त भोजन करते हैं। इसमें खासकर मन्नत वाले व्रतियों को देखने की अद्भुत अनुभूति होती है, जब वह दो दिन निर्जला उपवास रखते हुए घर से घाट तक पेट के बल चलकर सूर्य को दंड प्रणाम करते हुए घाट पर पूजा अर्चना के लिये पहुंचते हैं, और पानी में खड़े होते हैं।

दरअसल,  छठ पूजा मिथिलांचल वासियों द्वारा मनाया जाने वाला अद्वितीय पर्व है। मिथिलांचल समेत यह पर्व संपूर्ण बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़ के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है। इसके अलावा बिहार वासी दुनिया में जहां भी बसे हैं, वहां छठ पर्व का आयोजन किया जाता है। विदेशों में नेपाल, भूटान, फिजी, सुरीनाम, बांगलादेश, और लंदन, अमेरिका आदि जैसे देशों में छठ पर्व को बड़ी ही श्रद्धापूर्वक मनाया जाने लगा है। इस पर्व की सबसे बड़ी विशेषता है कि यह जाति-पाति, ऊंच-नीच, अमीर-गरीब, महिला-पुरूष आदि जैसी सामाजिक विसंगतियों से मुक्त है।

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