छोटा और बड़ा कवि

फुटपाथी कवि
फुटपाथ पर ही

मेरी बाहें लेते हैं पकड़
कहते हैं प्रेम से

मित्र , थोड़ा ठहर
मेरी प्रेमिकायें

मेरी ये नई रचनायें

बन ठनकर गई हैं संवर
सुन लो प्रिय , मित्रवर

कहकर यह कवि महोदय
लगते हैं पढ़ने

कविता पर कविता
बोर होने लगता हूँ

धीरे से कहता हूँ
बंधुवर।

ट्रेन मेरी छूट रही
कहते कवि , ठीक है फिर कभी

जान मैं छुड़ाता हूँ
दूर भाग जाता हूँ

और बड़े कवि –
आमंत्रित करके मुझे

घर में बुलाते हैं
रात को डिनर पर

डिनर के बाद
सुखाते हैं हाथ

शुरू हो जाते हैं
कवितायें सुनाते हैं

गीत गुनगुनाते हैं
अपनी ही धुन में

समय की गति को
जान नहीं पाते हैं

भावों के आवेश में
कभी कभी दहाड़ते हैं

तो ध्वनि के हथौड़े से

होती हैं दो बातें एक साथ
पलट – पट खुलते हैं मेरे
होठ कहते वाह वाह।

उपयुक्त पक्तियां इन्द्रधनुष पुस्तक बी एन झा द्वारा द्वारा लिखी गई हैं।