अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित भारत के पहले निशानेबाज़ रहे महाराजा करणी सिंह

चिन्मय दत्ता, चाईबासा, झारखंड
बीकानेर के रियासत में 21 अप्रैल 1924 को राजकुमार करणी सिंह का जन्म हुआ। इन्होंने स्कूली शिक्षा के बाद दिल्ली स्थित सेंट स्टीफेंस कॉलेज और बम्बई स्थित सेंट जेवियर्स कॉलेज से इतिहास और राजनीति विज्ञान में बी.ए. किया।
1952 में युवा महाराजा करणी सिंह को स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में बीकानेर लोकसभा क्षेत्र से संसद सदस्य चुना गया, यह सदस्यता 25 वर्षों तक रही। इन्होंने 1964 में बम्बई यूनिवर्सिटी से डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी के डिग्री प्राप्त की थी।
प्रतियोगात्मक निशानेबाजी के जनक के रूप में प्रतिष्ठित महाराजा ने अन्तर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में सभी स्तरों पर भारत का प्रतिनिधित्व किया। इनके पिता महाराजा सादूल सिंह को बंदूकों के बारे में हर प्रकार की जानकारी हासिल थी, इसलिए इन्होंने निशानेबाज़ी की शुरुआत पिता की देख-रेख में की थी।

इनको बंदूक का पहला अनुभव तेरह वर्ष की आयु में हुआ जब इन्होंने एक चिड़िया को अपने सही निशाने से मार गिराया। इस चिड़िया को मारने से इनकी निशानेबाजी की भीतरी चाहत को जहाँ बहुत संतुष्टि मिली, वहीं भावनात्मक रूप से ये बहुत आहत हुए।

इसके पश्चात इन्होंने निश्चय किया कि केवल शौक या आनंद के लिए निशानेबाजी करके किसी पक्षी या जानवर को नहीं मारेंगे तब से इन्होंने अपना इरादा केवल निशानेबाज़ी का कर लिया।

इनके लिए बंदूक या हथियार चलाना एक ऐसा स्वाभाविक कार्य था जैसे किसी व्यक्ति के लिए चलना। महाराजा करणी सिंह भारत के ऐसे पहले निशानेबाज है जिन्हें 1961 में पहली बार ‘अर्जुन पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। इन्होंने अपने निशानेबाजी के यादगार लम्हों को ‘फ्रॉम रोम टू मास्को’ नामक पुस्तक के रूप में प्रस्तुत किया है।
6 सितम्बर 1988 को नई दिल्ली में इनका प्राणांत हो गया। दिल्ली में ऐतिहासिक तुगलाकाबाद किले के पास स्थित ‘डॉक्टर करणी सिंह शूटिंग रेंज’ का नाम इनके नाम पर रखा गया।   महाराजा करणी सिंह की जयंती पर पाठक मंच के कार्यक्रम इन्द्रधनुष की 828वीं कड़ी में मंच की सचिव शिवानी दत्ता की अध्यक्षता में जानकारी दी गई।
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