चिन्मय दत्ता, चाईबासा, झारखंड
महेन्द्र सिंह धोनी ने 7 जुलाई 1981 को तत्कालीन बिहार के रांची में पान सिंह और देवकी देवी के घर पर हुआ। रांची के श्यामली स्थित डी.ए.वी. जवाहर विद्या मंदिर में पढ़ाई पूरी करने के साथ इन्होंने खेलों में भी सक्रिय रूप से शामिल होना शुरू कर दिया।
इन्हें पहले फुटबॉल का बहुत शौक था और वह अपनी फुटबॉल टीम के गोलकीपर थे। जिला स्तर पर खेलते हुए धोनी के कोच ने इनको क्रिकेट खेलने की सलाह दी। यह सलाह इनके लिए इतनी फायदेमंद साबित हुई कि ये भारतीय क्रिकेट टीम के सबसे कामयाब कप्तान बने।
1998-1999 के दौरान कूच बेहार ट्रॉफी से इनके क्रिकेट को पहली बार पहचान मिली। उन दिनों ये अपने क्रिकेट से ज्यादा विकेटकीपिंग के लिए सराहे जाते थे। इन्हें 2000 में पहली बार रणजी में खेलने का मौका मिला।
इसके बाद 2004 में इनको पहली बार भारतीय क्रिकेट टीम में जगह मिली फिर वक्त के साथ-साथ इन्होंने बल्ले से तूफान लाने शुरू कर दिए और एक विस्फोटक बल्लेबाज के रूप में उभरकर सामने आए। ये दाएं हाथ के बल्लेबाज हैं। इसके अलावा ये एक विकेटकीपर भी हैं। इनकी गिनती सबसे सफल भारतीय कप्तान के रूप में की जाती है।
इनकी कप्तानी में भारतीय क्रिकेट टीम क्रिकेट के तीनों प्रारूपों में नम्बर एक का ताज हासिल कर चुकी है। पहले इन्होंने टी-20 विश्व कप 2007 में भारत को जीत दिलाई फिर एक दिवसीय में भारत को नंबर वन तक पहुंचाया। इसके बाद 2011 में 28 साल बाद भारत को एक दिवसीय विश्व कप का खिताब दिलवाया। इनकी सेवाओं को देखते हुए भारत सरकार ने इन्हें राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार और पद्मश्री से सम्मानित किया है।
महेन्द्र सिंह धोनी के जन्म दिवस पर पाठक मंच के कार्यक्रम इन्द्रधनुष की 839वीं कड़ी में मंच की सचिव शिवानी दत्ता की अध्यक्षता में यह जानकारी दी गई।