स्वतंत्र भारत का संविधान निर्मात्री सभा के अध्यक्ष रहे डॉक्टर भीम राव अम्बेडकर

चिन्मय दत्ता, चाईबासा, झारखंड।
डॉक्टर भीम राव अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश में इंदौर के निकट महू छावनी में एक महार जाति के परिवार में हुआ था। इनके पिता रामजी राव महाराष्ट्र के मूल निवासी थे। भीम राव की प्रारंभिक शिक्षा सातरा की प्रारंभिक पाठशाला में हुई। अध्ययनकाल में इनके एक ब्राह्मण अध्यापक इनकी शैक्षिक प्रतिभा से प्रभावित होकर इन्हें अपना नाम ‘अम्बेडकर’ दे दिया जो सदा के लिए इनके नाम के साथ जुड़ गया।
यह 1927 में ये बम्बई विधान परिषद के सदस्य मनोनीत हुए, फिर 1929 में ‘समता समाज संघ’ की स्थापना करने के बाद 1930 में नासिक की कालाराम मंदिर में अछूतों के प्रवेश को लेकर सत्याग्रह किया।  इसके बाद 1931 के दूसरे गोलमेज सम्मेलन में इन्होंने दलितों के लिए पृथक निर्वाचन का अधिकार प्राप्त कर लिया और 1936 में इन्होंने ‘इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी’ की स्थापना की और अछूतों की कल्याण की स्पष्ट घोषणा करके वर्ष 1937 के आम चुनाव में भारी बहुमत से विजय प्राप्त किया। अब तक भारतीय राजनीति में इनका कद बहुत ऊंचा हो गया था जिससे 1942 में इन्हें गवर्नर जनरल का काउंसिल का सदस्य चुन लिया गया फिर इन्होंने 1946 में ‘पीपुल्स एजुकेशन सोसायटी’ नामक संस्था की स्थापना की।
1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ तब डॉ. भीम राव को संविधान निर्मात्री सभा का प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाया गया। इसके बाद 1949 में इनको स्वतंत्र भारत की सरकार का प्रथम विधि मंत्री बनाया गया फिर 1952 से 1956 तक यह राज्यसभा के सदस्य रहे। इनके जीवन पर रामायण,  महाभारत जैसे महाकाव्यों और संत कबीर, महात्मा फुले और गौतम बुद्ध जैसे महापुरुषों का गहरा प्रभाव पड़ा। इन्होंने लम्बे संघर्षमय जीवन के पश्चात 6 दिसम्बर 1956 को इस संसार से विदा ली। भारत सरकार द्वारा 1990 में इन्हें मरणोपरांत ‘भारत रत्न ‘ से विभूषित किया गया।
डॉक्टर भीम राव अम्बेडकर के जयंती पर पाठक मंच के कार्यक्रम इन्द्रधनुष की 827वीं कड़ी में मंच की सचिव शिवानी दत्ता की अध्यक्षता में जानकारी दी गई।
व्यक्तित्व कॉलम में आपको इस बार किस व्यक्तित्व के बारे में जानना है, अपने विचार अवश्य व्यक्त करें हमारे द्वारा उस व्यक्तित्व के बारे में जानकारी देने का पूर्ण प्रयास किया जाएगा।