प्रथम चरण के लोकसभा चुनाव से पूर्व आम जनता ने दी मिली जुली प्रतिक्रिया

डॉ.समरेन्द्र पाठक

वरिष्ठ पत्रकार।

नयी दिल्ली,18 अप्रैल 2024 .19 अप्रैल को देश में लोकसभा चुनाव के लिए प्रथम चरण में 102 लोक सभा सीटों पर स्वतंत्र एवं निष्पक्ष मतदान के लिए निर्वाचन आयोग की ओर से पूरी व्यवस्था की गयी है।

प्रथम चरण के इस चुनाव के लिए प्रचार अभियान बगैर शोर शराबे का रहा।मतदाताओं की खामोशी शायद ऐसे पहले कभी नहीं रही। मानो कोई चुनावी माहौल ही नहीं है।आखिर इस  ख़ामोशी की वजह क्या रही? इन सवालों को लेकर कई लोगों से बात की गयी। पेश है,जनता जनार्दन की प्रतिक्रियाएं:-

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर रहे योगेश कुमार कहते हैं,कि प्रथम चरण का चुनाव प्रचार अभियान काफी फीका रहा। उन्होंने लंबी यात्रा की,मगर कहीं चुनावी माहौल नहीं दिखा। कुछ स्थानों पर प्रधानमंत्री के होर्डिंग लगे जरूर दिखाई दिए। शहर से गांवों तक कहीं कोई प्रचार एवं प्रत्याशियों का जनसंपर्क नहीं दिखा।

प्रो.कुमार अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए कहते हैं,कि उस ज़माने में बच्चों को  कांग्रेस का चुनाव चिन्ह जोड़ा बैल एवं जनसंघ का जलता हुआ दिया का स्टिकर मिल जाता था और बच्चे उसे अपनी कमीज के दोनों तरफ लगाकर प्रचार में कूद पड़ते थे।

सुप्रसिद्ध समाज सेवी दया सिंह कहते हैं,कि इस ख़ामोशी में बहुत सा राज छिपा है। लोग किसी बड़े बदलाव की ओर दिखाई दे रहे है। ऐसा पहली बार देखने को मिल रहा है, जिसमें चुनाव को लेकर कोई उत्साह न हो। यह संकेत लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है।

ओडिशा निवासी जी.सी. दास ने बताया कि इस चरण का चुनाव प्रचार अभियान धीमा जरूर रहा,लेकिन अवाम में मोदी लहर है। इस बार भी लोग उन्हीं के पक्ष में वोट करने वाले हैं। दास ने मोदी सरकार के पांच प्रमुख कार्यो जम्मू कश्मीर से धारा 370 की वापसी,अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण,धन जन खाता के जरिये गरीबों को आर्थिक सहायता,मुफ्त कोरोना वैक्सीन एवं भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान को गिनाते हुए कहा कि इससे आम लोग उन्हें फिर से प्रधान मंत्री पद पर देखना चाहते हैं।

पेशे से इंजीनियर राजेश मोशलपुरिया ने बताया कि प्रथम चरण का चुनाव प्रचार काफी फीका रहा। लोगों को पता ही नहीं चला कि चुनाव है। मतदाताओं में ऐसी ख़ामोशी कभी नहीं रही। इससे साफ लगता है,कि लोग हताश एवं डरे हुए हैं। बेरोजगारी चरम पर है। समाज को धर्म के नाम पर बाँट दिया गया है। इन सब बातों को लेकर लोग बदलाव के मूड में दिख रहे हैं।

दिल्ली की राजनीति से लंबे समय तक सक्रीय रहे राजेंद्र कुमार महरौली एवं वयोवृद्ध पत्रकार सुलतान कुरैशी कहते हैं,कि इस ख़ामोशी से पता चलता है,कि हालात क्या है? कुमार ने कहा कि इस चरण में मतदाताओं में पहली बार इतनी ख़ामोशी देखने को मिला है। खासकर दिल्ली की चुप्पी गजब की रही है।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी का यहाँ के चुनाव पर असर के संबंध में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि इससे आप एवं कांग्रेस को फायदा मिलने की संभावना बढ़ गयी है। वैसे भी भाजपा के प्रत्याशी कमजोर हैं। उन्होंने यह भी कहा कि जिस नयी दिल्ली सीट से अटल एवं आडवाणी जैसे कद्दावर नेता उम्मीदवार रहें हों वहाँ से आज के इन प्रत्याशियों की हस्ती क्या है?

नाम न उजागर करने की शर्त पर कुछ सरकारी कर्मचारियों ने कहा कि ऐसे कर्मचारी जो स्थायी कर्मी हैं,उन्हें इस राज में फायदा जरूर हुआ है,लेकिन जो अस्थाई कर्मी एवं ठेके पर सालों से सेवा दे रहे हैं,उनकी हालत हो बहुत ही ख़राब है। इसका असर चुनाव में जरूर होगा।