गीत ; मगर हैं आदमी हम

सिंधु तट के रेत – कण तेरा निमंत्रण हम न भूले हैं। गुजरते हैं तुम्हारे पास…

ग़ज़ल महानगर

सूरज की किरण सहर शहर में नहीं लाती। दहशत की थाप देर रात से ही जगाती।…

द्रोण व एकलव्य

    मेरा ट्रांसफर होते ही हस्तिनापुर ज्वाइन करने से पूर्व ही हल्ला मच गया एकलव्य…

जीना ज़रूरी है ——-

मीमांसा डेस्क। अक्सर मेरे अनुजों द्वारा मुझसे यह सवाल किया जाता है ,जब जीवन का उद्देश्य…

कविता ; मुझको नहीं सताओ

  क्या हो गई खता ये मुझको जरा बताओ तुम रूठ करके ऐसे मुझको नहीं सताओ…

कविता ; मोहब्बत कभी खत्म नहीं होती — बस लोग मन से बदल जाते हैं

  मीमांसा डेस्क। मोहब्बत कभी खत्म नहीं होती बस लोग मन से बदल जाते हैं। कभी…

कविता ; कड़े इम्तेहान

    खत्म हो गया मस्ती का टाईम , और आ गये इम्तेहान । करें पढ़ाई…

गज़ल ; ये गज़ल कुछ सुना कीजिए

  ये ग़ज़ल कुछ सुना कीजिए। दो घड़ी गम भुला दीजिए। आदमी थक के रफ्तार से।…

साहित्यक रचनाएँ ; मृगतृष्णा

  जीवन की मृगतृष्णा में मुझे मिल जाता है सचमुच सरोवर मैं प्यास भी अपनी बुझा…

हास्य कविताएं : शत्रुध्न

  माँ ने बड़े प्यार से मुझसे पूछा , बेटा राम , लक्ष्मण , भरत ,…