बूँदियाँ

पग में पायल बाँधे तब से ये बूंदियाँ
नाचती उतरी बड़ी अदब से ये बूंदियाँ

जलते तन – मन मधुवन कल तक रवि की तपन
आज हुआ चंदन सा शीतल हर तृण हर कण

माँगी थी दिल्ली ने रब से ये बूंदियाँ
नाचती उतरी बड़ी अदब से ये बूंदियाँ

विरहानल को दुगुनित करता वो सूर्यानल
सूनी आँखें , सुखे होंठ लिए दिल बेकल

विरहिन ने देखी थी कब से ये बूंदियाँ।
नाचती उतरी बड़ी अदब से ये बूंदियाँ।

ये अषाढ़ की पहली मोतियों सी बूंदियाँ।
धूल – तिमिर चीरती ये ज्योतियों सी बूंदियाँ

दुआ करो लौटे ना अब से ये बूदियाँ
नाचती उतरी बड़ी अदब से ये बूंदियाँ

अपरिमित पीड़ा में प्राण – प्राण अकुलाये
है अदभुत वो सुख जो अप्रत्याशित आये

बरस – बरस बोलती हैं सब से ये बूंदियाँ
नाचती उतरी बड़ी अदब से ये बूंदियाँ

उपयुक्त पक्तियां इन्द्रधनुष पुस्तक बी एन झा द्वारा द्वारा लिखी गई हैं।