डॉ.समरेन्द्र पाठक
वरिष्ठ पत्रकार।
नयी दिल्ली,17 नवंबर 2023 (एजेंसी)। एक जमाना था,जब छात्र आंदोलनों से सत्ता की नींव हिल जाया करती थी, मगर अब काफी बदलाव आ गया है। न तो अब जज्बे के छात्र नेता रहे न ही छात्रों का असरदार आंदोलन। छात्रों का अंतिम आंदोलन वर्ष 1990 में देखा गया,मगर उसके बाद छात्रों का आंदोलन दफ़न हो गया। छात्रों के आंदोलनों में ऐसी शक्ति थी कि जय प्रकाश नारायण, छात्र आंदोलन की अगुवाई कर इंदिरा गांधी को वर्ष 1977 में सत्ता से बेदखल करने में कामयाब हुए थे। इंदिरा के शासन में उनके कानून मंत्री को दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के तत्कालीन अध्यक्ष सुभाष ने तो धमकी तक दे डाली थी।
बकौल गोयल वह वर्ष 1966-67 में दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष थे। उसी दौरान छात्रों के मुद्दे पर तत्कालीन कानून मंत्री गोपाल स्वरुप पाठक का घेराव किया गया। स्थिति काफी तनाव पूर्ण हो गयी थी,मगर उन्हें छात्र आदोंलन को देखकर झुकना पड़ा था। पंजाब के बरनाला जिले के रहने वाले गोयल की प्रारंभिक शिक्षा कोलकाता में हुयी। उनके पिता डब्लू.आर. गोयल का वहीँ किताबों का कारोबार था। कुछ समय बाद यह परिवार दिल्ली आ गया और नयी सड़क पर किताबों की दुकान चलाने लगे।
गोयल ने मैट्रिक की परीक्षा पास करने करने के बाद श्री राम कालेज में दाखिला लिया और वर्ष 1964-65 में पहली बार छात्र यूनियन के संयुक्त सचिव बने। फिर अध्यक्ष एवं उसके बाद विश्वविद्यालयों के छात्र संघों के प्रमुख बने। उन्होंने कहा कि उस समय उनकी घरेलू हालत ठीक नहीं थी, इस वजह से पुस्तकालयों में घूम-घूम कर किताबें बेचते थे। पढाई के साथ छात्र हितों की जिम्मेदारी थी। मगर जज्बा ही था कि हर काम कर लेते थे। उस ज़माने में छात्रों के बीच गजब का समन्वय एवं जोश हुआ करता था,जो अब देखने को नहीं मिलता है।
देश-विदेश में दर्जनों पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके गोयल ने कहा कि उन्हें सक्रिय राजनीति में जाने की कभी इच्छा नहीं हुयी हालाँकि वे कई प्रधानमंत्रियों के निकट रहे। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से उनका खास लगाव था। उन्होंने कहा कि इन दिनों व्यापार के अलावा सामाजिक कार्यो में समय व्यतीत करते हैं।एल.एस।