क्या एक प्रश्नचिह्न है प्रदूषण मुक्त दिवाली ?

सारिका झा/चिन्मय दत्ता।

पिछले कुछ वर्षों से दीपावली पास आते ही वातावरण में प्रदूषण का स्तर बेहद खराब से भी अधिक गंभीर स्थिति में पहुंच रहा है। इस बार भी ऐसा ही रहा। हालांकि प्रदूषित हवा देश-दुनियां को प्रभावित कर रही है, मगर राजधानी दिल्ली और इसके आस-पास के क्षेत्र विशेष रूप से इसकी मार झेल रहे हैं। आंखों में जलन, गले की खराश, सिरदर्द और सांस लेने में परेशानी का सामना कर रहे लोगों को इस बार तब राहत मिली जब दिल्ली में कृत्रिम बारिश के बारे में योजना बनाने के दौरान दीपावली से दो दिन पहले धनतेरस के दिन असल में झमाझम बारिश हो गई। हवा बेहद खतरनाक से अच्छी स्थिति में आ गई।

खुशगवार मौसम होते ही लोगों ने राहत की सांस ली, परंतु पटाखों में अपना आनंद ढूंढने वाले  कहां मानने वाले थे। सरकार की अपील और सुप्रीम कोर्ट के सख्त निर्देश के बावजूद दिवाली के दिन गली-मोहल्लों में जमकर आतिशबाजियां हुई जिससे एक बार फिर प्रदूषित हवा लोगों के जीवन पर खतरा बन रही है। आख़िर दोष किसका है ? नियमों पर सख्ती नहीं कर पाने वाली सरकार, पराली जलाने वाले किसान, सड़कों पर चलने वाली अनगिनत गाड़ियां, या फिर दूसरों की परवाह नहीं करने वाले मनमाने लोग इसके लिये जिम्मेदार हैं ?

वास्तव में दीपावली में सब कुछ प्रदूषण मुक्त होना चाहिए। न धुआं जनित प्रदूषण, न शारीरिक प्रदूषण,न मानसिक प्रदूषण अर्थात् हर तरह से साफ-सफाई पूर्ण होना चाहिए। इस पर्व को सही मायने में मनाना है तो प्रदूषण मुक्त दीपावली मनानी होगी। दीपावली खुशियों का पर्व है न कि प्रदूषण फैलाकर दुखी करने का।  दीपावली दीपों का पर्व है, बेशक दीप जलाएं। ‘दीपावली’ दो शब्दों दीप आवली ‘पंक्ति’ शब्द से मिलकर बना है, इसका वास्तविक अर्थ है ‘दीपों की पंक्ति’। घर के बाहर दीप जलाना बहुत रमणीय लगता है। दीप के साथ-साथ हमें अपने भीतर भी ज्ञान का दीप जलाना चाहिए।

न जाने कब इसमें इस तरह का परिवर्तन आ गया कि लोग दीप मात्र ना जलाकर पटाखे भी जलाने लगे। दमघोटू पटाखे की आवाज से सारा वातावरण भयाक्रांत हो जाता है। कहां लोग पहले रावण के भय से मुक्त होने की वजह से दीपावली मना रहे थे, अब दीपावली में आज का रावण रूपी प्रदूषण युक्त पटाखे की आवाज से भयाक्रांत हो रहे हैं। कहीं तो लोग गरीबी से जूझ रहे होते हैं और कहीं हजारों रुपए पटाखों पर बर्बाद कर दिए जाते हैं। हर साल पटाखों के चलते न जाने कितने हादसे  होते रहते हैं। आए दिन समाचार पत्र में पढ़ते हैं, हजारों लोग पटाखे कारखाने बनाने वाले कारखाने के हादसे कारण या कार्य-जनित बीमारियों के कारण मारे जाते हैं। हम कैसे वातावरण को भुलाकर पटाखों का प्रयोग अपने आनंद के लिए कर सकते है? क्या, प्रदूषण मुक्त दीपावली एक प्रश्न चिह्न है?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *