गजल  ; पूछा हमने बाबूलाल से

तिल तिल क्यों मरते हो ? पूछा हमने बाबूलाल से। बोले , गालों पर उनके दो…

कविता ; झूठी – खुशी

  मैंने बंद कर दिया पूछना हवाओं से फिजाओं से सूरज , चाँद तारों से अपने…

कविता ; खतराहीन

मैं कई बार कह चुका हूँ अपने साथियों से। अगर ईमान डिगाना ही है तो फुटकर…

कविता ; निर्बल कौन ?

  जंगल में जानवरों की एक बहुत बड़ी बैठक हुई बैठक में दो रखे गए प्रस्ताव…

कविता ; तलाश

  व्यक्ति जब व्यक्ति से कटता है फिर न जाने क्यों मेरे सीने में दर्द होने…

कविता ; पुरातन मोह

इतने साल बीत गए अभी भी करते हो अंग्रेजों के शासन का बखान सुशासन कहके। बड़े…

कविता ; समरथ के नहिं दोष

    मैंने दो तरह के कवि देखे हैं छोटा और बड़ा। छोटा बड़े की बनाई…

कविता ; मृगतृष्णा

जीवन की मृगतृष्णा में मुझे मिल जाता है सचमुच सरोवर मै प्यास भी अपनी बुझा लेता…

कविता ; शाश्वत

ओ सुंगध। तुम अगर अन्न होते तो मैं तुम्हें पकाकर खा जाता कहाँ है इतना धैर्य…

कविता ; ज्ञानी

पर्वत की चोटी पर श्वेत चादर बर्फ की दिखती चट्टान सी । मक्खन सी पिघलती  …