क्या होगा- भाग-2

पाकीजाओं की इस कहानी का अंत क्या होगा?

मेरे किस्से (क्या होगा–(1)???) की पाकीजा अचानक एक सुबह मुझे टाउन पार्क के बेंच पर बैठी मिल गयी। कुछ उदास सी लग रही थी। मैं पास गया तो उसने बिना पूछे ही बताना शुरू कर दिया कि जब चेहरा जलने और सुंदर ना रहने के बावजूद भी नज़रों ने उसका पीछा नहीं छोड़ा तो एक दिन उसने परेशान होकर अपनी इहलीला समाप्त कर ली।

मैंने कहा:-‘तो ठीक है फिर, अब उदास क्यों हो?’

वो बोली:-‘मैं इसीलिए उदास हूँ कि आखिर मैंने ऐसा कदम क्यों उठा लिया, मरने जैसा? मैं नाराज़ हूँ अपने आप से कि आखिर इससे हुआ क्या?’

मैंने कहा:-‘अरे भई, ठीक ही तो किया तुमने, एक अबला पाकीजा अपने पाक दामन को बचाए रखने के लिए मरने के सिवाय और कर भी क्या सकती है! और वो तुमने किया। तब फिर उदास होने या फिर खुद से नाराज़ होने वाली क्या बात है इसमें?’

मेरी बात सुनकर उसकी आवाज कुछ तेज़ हो गयी थी।

उसने कहना शुरू किया:-“आखिर क्यों? क्यों नहीं कर सकते हम और कुछ? कब तक हम ये कायराना कदम उठाते रहेंगे? आखिर मेरे मरने से भी किस्सा ख़त्म तो नहीं हुआ ना! आखिर आज भी तो पाकीजाओं के दामन उसी डर में जी रहे हैं, जिसमे जीते-जीते मैंने मरने जैसा कदम उठा लिया।

क्या हो गया इससे?

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अब पाकीजायें अबला नहीं बनी रह सकतीं। अब वो अपना चेहरा नहीं जलायेंगीं; बल्कि उन गन्दी नज़रों को देखने के काबिल ही नहीं छोड़ेंगी। अब हमारे हाथ हमारे लिए फांसी का फंदा नहीं तैयार करेंगे बल्कि ये कारण बनेंगे उन रावणों के संहार का, जो सीता को महज सजावटी सामान समझकर उससे अपने महल की शोभा बढ़ाना चाहते हैं। अब हम अबला नहीं बनी रह सकतीं।”

कहते-कहते उसकी आँखें लाल हो आई थीं। मुझे लगा कि उसकी आँखों में कोई क्रांति जन्म ले रही है। उसकी बातों में एक दृढ़ता सी झलक रही थी और इस दृढ़ता से मुझे सुकून मिल रहा था।

तभी अचानक दरवाजे पर हुई किसी दस्तक से मेरी आँखें खुल गयीं। अख़बार वाला अख़बार दे गया था।

अखबार उठाते ही मेरी नज़र एक समाचार पर पड़ी -“लोकलाज के भय से एक बलात्कार पीड़िता ने आत्महत्या की।”

पाकीजा की सुखद बातों का भ्रम टूट चूका था।

मन यह सोचकर व्यथित है कि आखिर ये पाकीजायें कब तक अबला बनीं रहेंगी?

पाकीजाओं की इस कहानी का अंत क्या होगा???

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