इतिहास का वह पन्ना, जिसे पढ़ना जरूरी है।

इतिहास का वह पन्ना, जिसे पढ़ना जरूरी है।

महिला दिवस विशेष

चिन्मय दत्ता।

प्रसंग देशभक्ति का हो या फिर नारी शक्ति का, त्याग का हो या अर्पण का…. स्वाभाविक ही ‘इतिहास का वह पन्ना’ पर ध्यान केंद्रित हो जाता है। यह वह पन्ना है जिसने मेवाड़ के राजवंश की रक्षा के लिए अपने वंश का अर्पण कर दिया।

आज 8 मार्च को अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर जब प्रेरक महिलाओं की व्याख्या की जा रही है, तब एक नाम उस वीरांगना का भी आता है, जो अतुलनीय है।

कौन ऐसी मां होगी जो स्वामी पुत्र की रक्षा के लिए अपनी गोद में खेलते हुए इकलौते लाल को काल के गाल में फेंक देगी। धन्य है वह मां और धन्य उसकी स्वामी भक्ति! जो अपनी आंखों के सामने अपने पुत्र की बलि होते देख विचलित न हुई हो।

इतिहास में देश, धर्म, कर्तव्य और स्वतंत्रता के लिए जीवन अर्पण करने वालों की कमी नहीं है, परंतु राजवंश की रक्षा के लिए अपनी वंश के इकलौता पुत्र को बलि वेदी पर चढ़ा कर जो आदर्श पन्ना धाय ने स्थापित की है, वह संसार में दुर्लभ है।

पन्ना का जन्म 8 मार्च 1490 में हुआ था। उसके पिता का नाम हरचंद हांकला और पति का नाम सूरजमल चौहान था, जो कमेरी गांव का रहने वाला था। पन्ना को महाराणा संग्राम सिंह ने 4 अगस्त 1522 को चित्तौड़गढ़ दुर्ग में जन्मे अपने पुत्र उदय सिंह की धाय नियुक्त किया था।

उस घटना का जिक्र कुछ इस तरह है……………

मेवाड़ के वीर योद्धागण स्वर्गलोक सिधार चुके हैं। महाराणा संग्राम सिंह और महारानी कर्णावती संसार में नहीं है। मेवाड़ के राज सिंहासन पर दासी पुत्र बनवीर राज कर रहा है। ऐसे समय में राजवंश का एकमात्र उत्तराधिकारी संग्राम सिंह के सुपुत्र उदय सिंह पन्ना धाय की संरक्षण में प्रसन्नतापूर्वक अपनी शैशवावस्था व्यतीत कर रहे हैं। वह अबोध क्या जाने कि उसका वध करने लिए बनवीर षड्यंत्र रच रहा है? मेवाड़ के राज सिंहासन पर बैठा दासी पुत्र बनवीर इस चिंता में पड़ा है कि मेवाड़ का एकमात्र उत्तराधिकारी उदय सिंह के जीवित रहते मेरा यह अधिकार सुरक्षित नहीं है। यह सोचकर बनवीर उदय सिंह का वध करने के लिए व्यग्र है।

रात्रि का समय है। हर जगह अंधकार व्याप्त हो गया। राज महल में सन्नाटा छा गया। शिशु उदय सिंह सुख की नींद सो रहा है। उसकी धाय मां पन्ना पलंग पर बैठी पंखा झेल रही है। इसी बीच एक भयंकर कोलाहल से राजमहल गूंज उठा, जिससे पन्ना चौंक उठी। तभी एक विश्वसनीय दास वहां आकर कांपते कंठ से बोला- बनवीर, उदय सिंह का वध करने आ रहा है। पन्ना घबरा कर सोचने लगी, मेरे सामने राजवंश का नाश होगा और मैं आंखें फाड़ कर उस दृश्य को देखूंगी। मैं ऐसा नहीं होने दूंगी। मैं उदय सिंह की रक्षा अवश्य करूंगी, जिससे देश, धर्म और राजवंश की रक्षा होगी।

कमरे के कोने में फल की एक टोकरी रखी थी। पन्ना ने उदय के कपड़े उतार कर अपने इकलौते पुत्र चंदन को पहना कर उदय सिंह के पलंग पर सुला दिया और उदय को फल की टोकरी में सुला कर फलों और पत्तों से ढक कर उसी विश्वसनीय दास को टोकरी लेकर शीघ्र ही दुर्ग से बाहर निकल जाने को कहा। दास ने वैसा ही किया।

इतने में बनवीर नंगी तलवार लिए कमरे में आ धमका और कहा- उदय कहां है? पन्ना कुछ ना बोल सकी, केवल अपने पुत्र की ओर इशारा कर दिया। देखते ही बनवीर ने क्षण भर में उस शिशु का वध कर दिया। पन्ना ने अपने पुत्र को अपनी आंखों से तड़प-तड़प कर मरते देखा। राजमहल में किसी को भी यह खबर न लग सकी कि पन्ना ने अपने पुत्र चंदन का बलिदान कर राजवंश के अंतिम प्रदीप को बुझने से बचा लिया है।

चित्तौड़ के पश्चिम की ओर वेरीस नदी के तट पर दास पन्ना का प्रतीक्षा कर रहा था। उसके पास रखी टोकरी में सौभाग्यशाली उदय सिंह सो रहे थे। पन्ना उस दास के साथ उदय को लेकर देवल नगर में सिंह राव के पास शिशु की रक्षा की प्रार्थना की, परंतु बनवीर के भय से उन्होंने आश्रय नहीं दिया। वहां से डूंगापुर गई, वहां ऐशवर्ण ने असमर्थता दिखाई। पन्ना वीर और विश्वासी योद्धाओं को साथ लेकर दुर्गम अरावली पर्वत मार्ग से ईडर कमलमीर पहुंची। आशा शाह अपनी माता की प्रेरणा तथा पन्ना से प्रसन्न होकर उदय को अपने यहां आश्रय देना स्वीकार कर लिया। इस तरह उदय किलेदार का भांजा बनकर बड़े हुए।

इस तरह पन्ना धाय के बलिदान से महाराणा उदय सिंह ने मेवाड़ के राज सिंहासन को 1540 से 1572 तक सुभाषित किया। इन्होंने नई राजधानी उदयपुर बसाई, जो राजस्थान का प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। कुम्भलगढ़ किले में 9 मई 1540 में जन्मे इनके सुपुत्र विश्व प्रसिद्ध महाराणा प्रताप ने 1572 से 1597 तक मेवाड़ के राज सिंहासन पर आसीन रहे।

 

 

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