लेखक कवि और पत्रकार थे, स्वतंत्रता सेनानी पथिक।

चिन्मय दत्ता, चाईबासा।

27 फरवरी 1882 को राजस्थान के बुलन्द शहर जिले के ग्राम गुठावली कलां की गुर्जर परिवार में जन्मे “विजय सिंह पथिक उर्फ भूप सिंह गुर्जर भारत के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों में से एक हैं। इन्हें राष्ट्रीय पथिक_ के नाम से जाना जाता है। इनके दादा इन्द्र सिंह बुलन्द शहर स्थित माला गढ़ रियासत के दीवान थे, जिन्होंने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों से लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की थी। भूप के पिता हमीर सिंह गुर्जर क्रान्ति में भाग लेने के आरोप में गिरफ्तार हुए थे। माँ कमल कुमारी और परिवार की क्रान्तिकारी एवं देश भक्ति से परिपूर्ण पृष्ठभूमि का गहरा असर पड़ा।

1912 में ब्रिटिश सरकार ने भारत की राजधानी कोलकाता से हटाकर दिल्ली लाने का निर्णय लिया। इस अवसर पर भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड हार्डिंग ने दिल्ली में प्रवेश करने के लिए एक शानदार जुलूस का आयोजन किया। पथिक सहित कई क्रान्तिकारियों ने लॉर्ड हार्डिंग को मारने की कोशिश की।

1915 में रास बिहारी बोस के नेतृत्व में लाहौर में क्रान्तिकारियों ने निर्णय लिया कि 1857 की स्वतंत्रता संग्राम की तर्ज पर सशस्त्र विद्रोह किया जाए, भारतीय इतिहास में इसे गदर आन्दोलन कहते हैं। राजस्थान में इस क्रान्ति को संचालित करने का दायित्व इनको सौंपा गया। इन्होंने आन्दोलन का कमान संभालते हुए अपना नाम भूप सिंह से बदल कर विजय सिंह पथिक रख लिया।

1920 में इनके प्रयत्न से अजमेर में राजस्थान सेवा संघ की स्थापना हुई। ये कवि, लेखक और पत्रकार भी थे। इन्होंने नव संदेश और राजस्थान संदेश हिन्दी अखबार निकाले। हिन्दी साप्ताहिक तरुण राजस्थान में राष्ट्रीय पथिक नाम से यह अपना विचार व्यक्त करते थे। 28 मई 1954 को इनका प्राणांत हो गया। इनके स्मृति में भारत सरकार ने 1992 में डाक टिकट जारी किया।

उपरोक्त जानकारी विजय सिंह पथिक के जन्मदिवस के अवसर पर गैर सरकारी संस्था दर्शन मेला म्यूजियम डेवलपमेंट सोसायटी की प्रमुख उपलब्धि पाठक मंच के कार्यक्रम इन्द्रधनुष की 715वीं कड़ी मंच का सचिव शिवानी दत्ता की अध्यक्षता में दी गई।

 

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