अक्सर जब हम किसी अच्छे व्यक्ति का उदाहरण देते हैं, तो साथ में इतना जरूर कह देते हैं ‘अरे, उनके जैसा कौन हो पाएगा?’ या ‘उतना अच्छा कौन हो पाएगा?’ या ऐसी ही और भी कई असंभव लगने जैसी बातें।
इन सब बातों का निष्कर्ष यही बनता है कि अच्छा होना मानो कोई बहुत मुश्किल सा काम है। अच्छा बनना सबके बस का नहीं है। और किसी के बस का हो या नहीं, लेकिन हमारे बस का तो नहीं है…
अच्छाई-बुराई की बात जब भी हो, अच्छाई को हमेशा असंभव सा बनाकर पेश किया जाता है।
क्या सच में अच्छा होना इतना मुश्किल काम है?
इससे भी बड़ा सवाल कि क्या बुरा होना अच्छा होने से आसान है?
इन दोनों ही प्रश्नों का उत्तर है, ‘नहीं।’
अच्छा होना बिलकुल भी मुश्किल काम नहीं है और बुरे होने की तुलना में तो यह बहुत ज्यादा आसान है।
आप सोचेंगे कि कैसे?
इसे समझने की कोशिश करते हैं।
शुरुआत बुरा होने से की जाए।
बुरा होने के लिए आपको क्या करना होता है?
किसी को गाली देनी पड़ती है। किसी से लड़ाई झगड़ा करना पड़ता है। अपने से बड़ों की अवहेलना करनी पड़ती है। अपने से छोटे का अपमान करना पड़ता है। किसी असहाय का मजाक बनाना पड़ता है। उद्देश्य विहीन सा जीवन जीना पड़ता है। सख्त दिखने की कोशिश में हर समय उग्र सा व्यवहार बनाकर रखना पड़ता है। ऐसा ही और भी न जाने क्या-क्या करना पड़ता है।
और एक सवाल कि क्या ये सब करके भी आप कुछ ठीक-ठाक सा बुरा व्यक्ति बन पाते हैं? कोई ऐसा बुरा व्यक्ति कि जिससे लोग डरते हों। इतना बुरा कि डर के मारे ही सही, लोग सामने सम्मान करने का दिखावा करते हों। इतना बुरा कि बुराई में आपको कोई मात न दे पाए।
बिलकुल नहीं।
ऊपर जितना कुछ भी बताया गया, उतना करके भी आप कुछ खास बुरा नहीं बन पाते हैं। बस आप इतना ही बुरा बन पाते हैं कि आते-जाते लोग आपको दो-चार बुरे-भले शब्द कहकर चल देते हैं। आपके आगे-पीछे आपकी बात मानने और आपका सम्मान करने वाला कोई नहीं होता। लोग आपको हेय दृष्टि से देखते हैं। कई बार तो इस स्तर के बुरे लोगों को दया की दृष्टि से भी देखा जाता है, क्योंकि जीवन के एक पड़ाव के बाद उनकी यह बुराई बस उनके स्वयं के लिए ही रह जाती है। उनके क्रोध को भी कोई खास महत्व नहीं देता है।
संभवत: आप समझ ही गए होंगे कि बुरा होना कितना मुश्किल काम है और ढंग का बुरा होना तो बहुत ही ज्यादा मुश्किल है।
अब बात करते हैं अच्छे होने की।
अच्छा होने के लिए आपको क्या करना है?
असल में अच्छा होने के लिए आपको अलग से कुछ करना ही नहीं होता है। बस बड़ों से उसी सम्मान से बात कीजिए, जितने सम्मान से आपको करना चाहिए। छोटे को उतना प्रेम दीजिए, जितना उसे मिलना चाहिए। किसी असहाय या जरूरतमंद की बस उतनी सहायता कर दीजिए, जितनी आप सहजता से कर पाएं। जीवन में लक्ष्य तय करते हुए आगे बढि़ए। आपको बेवजह सख्त दिखना नहीं है, इसलिए व्यवहार में भी कोई कृत्रिमता रखने की आवश्यकता नहीं है। क्रोध करने या दिखाने की आवश्यकता नहीं होती है। अगर कभी थोड़ा-बहुत क्रोध किसी बात पर आ भी जाए, तो सब आपके क्रोध का सम्मान करते हैं और उस परिस्थिति को सही करने का प्रयास करते हैं, जिससे आपको क्रोध करना पड़ा।
कुल मिलाकर अच्छा होने के लिए आपको कुछ भी अलग से नहीं करना है। बस सहज बने रहना है। और सबसे मजेदार बात…
बस इतना सा ही अच्छा होकर आप ठीक-ठाक अच्छे लोगों में गिने जाते हैं। बड़े आपको प्रेम करते हैं। छोटे आपका सम्मान करते हैं। कहीं कुछ बात होती है, तो आपका उदाहरण दिया जाता है। और एक पड़ाव पर पहुंचने के बाद यह संचित अच्छाई आपके जीवन को आह्लाद और उपलब्धियों से भर देती है।
तो ध्यान रखिए, फिर कभी कोई कहे कि अच्छा होना मुश्किल है, तो उसे तुरंत टोक दीजिए। उसे बताइए कि अच्छा होना कितना आसान और आनंददायक होता है। अच्छे होने का आनंद जीवन में हमेशा रहता है।
(समाधान है… कॉलम में ऐसे ही अनुत्तरित लगने वाले प्रश्नों के समाधान पाने का प्रयास होगा। प्रश्न आप भी पूछ सकते हैं। प्रश्न जीवन के किसी भी पक्ष से संबंधित हो सकता है। प्रश्न भाग्य-कर्म के लेखा-जोखा का हो या जीवन के सहज-गूढ़ संबंधों का, सबका समाधान होगा। बहुधा विषय गूढ़ अध्यात्म की झलक लिए भी हो सकते हैं, तो कई बार कुछ ऐसी सहज बात भी, जिसे पढ़कर अनुभव हो कि यह तो कब से आपकी आंखों के सामने ही था। प्रश्न पूछते रहिए… क्योंकि हर प्रश्न का समाधान है।)