आवाज में नशा है…

आपने कभी ना कभी किसी की तारीफ में कहा होगा या किसी को कहते सुना होगा कि उनकी आवाज में नशा है। आमतौर पर किसी  की आवाज बहुत अच्छी होती है, तो उसकी प्रशंसा के लिए प्राय: यह बोल दिया जाता है। अगर मैं कहूं कि आवाज में सच में नशा होता है, तो?
चौंकिए मत। यदि आवाज को सिर्फ किसी के बोलने के अंदाज से न जोड़कर हर ध्वनि के संदर्भ में सोचा जाए तो आवाज में सच में नशा होता है।
इसे थोड़ा सरल करके समझते हैं।

आपने अक्सर माता-पिता को यह शिकायत करते सुना होगा कि बच्चा मोबाइल में गेम बहुत खेलता है। हो सकता है कि आप भी इससे परेशान हों।
क्या सच में हर बच्चे को गेम खेलने की आदत लग जाती है? ऐसा तो बिल्कुल नहीं है। बहुत से बच्चे शौकिया तौर पर कभी गेम खेल लेते हैं, लेकिन अगले दिन उन्हें गेम खेलने को ना भी मिले तो कोई जिद नहीं करते।

कंप्यूटर पर गेम खेलने वाले बच्चों की तुलना में स्मार्टफोन पर इयरफोन लगाकर गेम खेलने की लत जल्दी लगती है।

ऐसा क्यों होता है?
इसका उत्तर भी इसी में छिपा है। ‘इयरफोन’ लगाकर गेम खेलने से लत जल्दी लगती है।
और यही वह बात है, जिसे लेकर हमने पहली लाइन लिखी है, ‘आवाज में नशा है।’
वास्तव में हमारा मस्तिष्क हर ध्वनि के हिसाब से अलग-अलग प्रतिक्रिया देता है। ध्यान दें तो आपको अनुभव होगा कि किसी गाने में जितने भी अलग-अलग वाद्य यंत्र एक साथ बजाए गए हों, आप उनमें से हर वाद्य यंत्र की आवाज को पहचान जाते हैं। ढोलक की थाप, बांसुरी की धुन और हारमोनियम का राग, सब अलग-अलग समझ में आ जाता है।
इसका कारण है कि ध्वनि की तीव्रता, आवृत्ति और तरंगदैर्घ्य के हिसाब से दिमाग उसे पहचानता है। हाल में ऐसे भी कई मामले देखे गए हैं, जहां मस्तिष्क से जुड़ा कोई ऑपरेशन करने के दौरान मरीज को गाना या संगीत सुनाया गया।

अब आते हैं अपने मूल विषय पर कि इस सबका लत से क्या संबंध है?
असल में गेम के साथ जो साउंड दिया जाता है, उसकी तीव्रता दिमाग को झंकृत कर देती है। कंप्यूटर में आम तौर पर लोग बिना आवाज के ही गेम खेल रहे होते हैं। साथ ही उस दौरान बड़ी स्क्रीन होने के कारण आंखें भी गतिशील रहती हैं। ऐसे में दिमाग के कई हिस्से अलग-अलग काम में सक्रिय रहते हैं। इससे आपका दिमाग उस निश्चित गेम को लेकर बहुत ज्यादा उत्सुक नहीं होता है और न ही वह गेम दिमाग को अपने नियंत्रण में ले पाता है।

इससे इतर अगर कोई बंद कमरे में साउंड के साथ कंप्यूटर पर गेम खेले तो उसे ज्यादा लत लग जाती है, क्योंकि गेम खेलने के दौरान दिमाग बहुत अधिक एकाग्रता के साथ उस गेम से जुड़ी भावनाओं को आत्मसात कर रहा होता है। उससे संबंधित रसायन और हार्मोन शरीर में बनते हैं और शरीर उनसे नशा अनुभव करता है। बहुत लंबे समय तक अगर उस गेम से दूर रहना पड़े तो दिमाग और शरीर दोनों उस झंकार और उससे बने हार्मोन की कमी अनुभव करने लगते हैं और आप न चाहते हुए भी खेलने लग जाते हैं।

स्मार्टफोन के मामले में संकट और बढ़ जाता है। स्मार्टफोन की स्क्रीन छोटी होती है। ऐसे में आपका पूरा ध्यान उसी पर लगा रहता है। दिमाग की एकाग्रता बढ़ जाती है। इयरफोन लगाकर यदि साउंड के साथ गेम खेलें तो यह एकाग्रता और ज्यादा बढ़ जाती है। इससे दिमाग उन भावनाओं से खुद को और भी ज्यादा गंभीरता से जोड़ लेता है। शरीर में संबंधित हार्मोन और भी ज्यादा तीव्रता से स्रावित होते हैं और शरीर को उसकी और भी ज्यादा आदत होती चली जाती है।
साउंड और विजुअल के इसी साथ को मिलाकर कई ऐसे खतरनाक गेम बना दिए जाते हैं, जिनके प्रभाव में आकर बच्चे हिंसक हो जाते हैं।

हाल में कई बच्चों के आत्महत्या करने के मामले भी देखे गए हैं। यह सब कुछ ध्यान लगाने जैसा होता है। बस फर्क यही होता है कि आप उस ध्यान की अवस्था में सकारात्मक के बजाय नकारात्मक ध्वनियों के प्रभाव में रहते हैं। इसी तरह कई लोगों में आदत होती है इयरफोन लगाकर गाने सुनने की। कुछ लोग यहां तक कहते हैं कि इयरफोन पर गाना सुने बिना उन्हें नींद नहीं आती। असल में वह भी आवाज के उसी नशे का शिकार हो चुके होते हैं। इयरफोन लगाकर गाना सुनते समय मस्तिष्क केवल उन्हीं आवाजों के आसपास सोच-विचार कर पाता है। समय के साथ वे भावनाएं आपके दिमाग के लिए आदत बन जाती हैं और आपका शरीर उसके हिसाब से चलने लगता है।

आप अनुभव कर सकते हैं कि यदि इयरफोन लगाकर दुख भरे गाने सुने जाएं तो आपका शरीर शिथिल पड़ जाता है।
जिम जाने वाले भी बिना वैज्ञानिक कारण समझे हुए ही इसका प्रयोग करते हैं। अक्सर जिम में व्यायाम करते समय कई लोग इयरफोन पर गाने लगाकर सुनने लगते हैं। इससे उनका मस्तिष्क व्यायाम के कारण होने वाली थकान को नजरअंदाज करते हुए शरीर को उन गानों के हिसाब से प्रोत्साहित करता रहता है। आदत यह भी अच्छी नहीं है। क्योंकि इससे कई बार आप शरीर की क्षमता से ज्यादा व्यायाम करते चले जाते हैं और अनुभव नहीं कर पाते हैं। लगातार अनदेखी की जाए तो यह जानलेवा भी हो सकता है।
ध्यान रहे, नशा कोई भी हो, हानिकारक ही होता है।
कोशिश कीजिए की इयरफोन के नशे से आपका मस्तिष्क और शरीर बचा रहे।

(समाधान है… कॉलम में ऐसे ही अनुत्तरित लगने वाले प्रश्नों के समाधान पाने का प्रयास होगा। प्रश्न आप भी पूछ सकते हैं। प्रश्न जीवन के किसी भी पक्ष से संबंधित हो सकता है। प्रश्न भाग्य-कर्म के लेखा-जोखा का हो या जीवन के सहज-गूढ़ संबंधों का, सबका समाधान होगा। बहुधा विषय गूढ़ अध्यात्म की झलक लिए भी हो सकते हैं, तो कई बार कुछ ऐसी सहज बात भी, जिसे पढ़कर अनुभव हो कि यह तो कब से आपकी आंखों के सामने ही था। प्रश्न पूछते रहिए… क्योंकि हर प्रश्न का समाधान है।)

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