समय प्रबंधन का मंत्र क्या है?

एक कहावत है कि समय कभी किसी के हाथ में नहीं आता है। घड़ी भी कलाई पर बंधती है। इसी तरह एक सबसे बड़ा सच यह भी है कि एक दिन में कुल 24 घंटे का ही समय होता है। सर्वाधिक व्यस्त व सफल व्यक्ति के जीवन में भी और सर्वाधिक विफल एवं अकर्मण्य व्यक्ति के जीवन में भी दिन में कुल 24 घंटे ही होते हैं।

लेकिन आपने अक्सर बहुत से लोगों को बात-बात पर कहते सुना होगा कि टाइम ही नहीं मिलता है। फलां काम के लिए वक्त नहीं निकल पाता है। वहां जाने का समय नहीं लग पाता है। यहां रहने का समय नहीं मिल पाता है। और भी ऐसी ही बहुत सी बातें।

इन्हीं सब बातों में से एक प्रश्न का जन्म होता है कि समय प्रबंधन का मंत्र क्या है?

हमारे सुधी पाठक ने यह प्रश्न किया है।

निश्चित तौर पर अनगिनत लोगों के मन में यह प्रश्न उठता है। अधिकतर लोग इस समस्या से दो-चार हो रहे होते हैं कि उन्हें उनके कई कामों के लिए समय कैसे मिले?

हमेशा की तरह, इस प्रश्न में भी इसका समाधान छिपा हुआ है।

कैसे?

इस प्रश्न में जो एक शब्द है ‘प्रबंधन’, बस यही तो समाधान है।

यह बात तो हमने सबसे पहले ही कह दी कि दिन में सबके पास 24 घंटे ही होते हैं। इस समय को बढ़ाने का किसी के पास कोई तरीका नहीं है। आवश्यकता है तो इस समय को सही तरीके से प्रबंधित करने की।

इसके लिए एक छोटी सी कहानी सुनाता हूं।

कक्षा में अध्यापक ने सभी बच्चों को एक डिब्बा, कुछ बड़े पत्थर, कुछ छोटे पत्थर और रेत दिया। फिर उन्हें अलग-अलग जाकर उस डिब्बे को छोटे-बड़े पत्थरों और रेत से भरने को कहा गया। कुछ देर बाद सभी बच्चे अपना-अपना डिब्बा लेकर आए। किसी के पास कम पत्थर बचे थे तो किसी के पास ज्यादा। किसी के पास बड़े पत्थर बचे रह गए तो किसी के पास छोटे।

इसके बाद उतनी ही वस्तुओं के साथ अध्यापक ने भी डिब्बे को भरना प्रारंभ किया। देखते ही देखते सब कुछ उस डिब्बे में भरता चला गया। अंत में थोड़ी-बहुत रेत के अलावा सब कुछ उस डिब्बे में समा गया था।

डिब्बे को पत्थरों और रेत से भरने में ही प्रबंधन की झलक दिखाई देती है।

दरअसल जिन बच्चों ने रेत भरने से शुरुआत की उनके ज्यादातर पत्थर बचे रह गए। जिन बच्चों ने छोटे पत्थरों से शुरुआत की, उनके बड़े पत्थर बचे रह गए। वहीं अध्यापक ने सतर्कता के साथ पहले बड़े पत्थर को रखा, फिर हल्की सी जगह बनाते हुए उनमें छोटे पत्थरों को समाहित किया और अंत में रेत भरनी शुरू की। रेत खुद ब खुद खाली जगहों में समाती चली गई। इस तरह से उसी डिब्बे में लगभग सब कुछ समा गया।

यही प्रबंधन है।

वह डिब्बा ही आपके पास 24 घंटे का एक दिन है। आपके सामने कुछ काम होते हैं जो बड़े पत्थर जैसे महत्वपूर्ण होते हैं। कुछ छोटे पत्थरों जितने महत्व के होते हैं और कुछ हल्के-फुल्के काम रेत जैसे होते हैं। आपको अपने इन कामों में प्राथमिकता तय करने की आवश्यकता है। बड़े और छोटे पत्थरों को संजोने में थोड़ी मेहनत तो लगेगी, लेकिन इससे आप अपने नियत समय में ही रेत जैसी बहुत कम जरूरी गतिविधियों के लिए भी थोड़ा बहुत समय निकाल ही लेंगे। लेकिन, यदि आपने शुरुआत ही रेत से कर दी तो सब महत्वपूर्ण बातें धरी रह जाएंगी।

प्राथमिकताएं तय कीजिए। साल की शुरुआत में महीनों के हिसाब से मोटे तौर पर खाका बना लीजिए। महीने की शुरुआत पर हफ्ते के हिसाब से खाका तैयार कीजिए और हफ्ते की शुरुआत में दिन के हिसाब से खाका तैयार कर लीजिए। इसके बाद हर सुबह यह सोचकर शुरुआत कीजिए कि सबसे महत्वपूर्ण कार्य क्या है। प्राथमिकताओं के आधार पर कार्य करते जाइए।

यह सब कुछ थोड़ा उबाऊ तो लग सकता है, लेकिन यदि एक बार आपने दिनचर्या में यह अनुशासन अपना लिया तो किसी भी काम के लिए यह कहने की आवश्यकता नहीं रह जाएगी कि समय नहीं मिल पाया।

(समाधान है… कॉलम में ऐसे ही अनुत्तरित लगने वाले प्रश्नों के समाधान पाने का प्रयास होगा। प्रश्न आप भी पूछ सकते हैं। प्रश्न जीवन के किसी भी पक्ष से संबंधित हो सकता है। प्रश्न भाग्य-कर्म के लेखा-जोखा का हो या जीवन के सहज-गूढ़ संबंधों का, सबका समाधान होगा। बहुधा विषय गूढ़ अध्यात्म की झलक लिए भी हो सकते हैं, तो कई बार कुछ ऐसी सहज बात भी, जिसे पढ़कर अनुभव हो कि यह तो कब से आपकी आंखों के सामने ही था। प्रश्न पूछते रहिए… क्योंकि हर प्रश्न का समाधान है।)

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