चिन्मय दत्ता
भगवती सरस्वती को प्रजापति ब्रह्मा की पुत्री माना गया है। इनकी जयंती ‘वसंत पंचमी’ को माना जाता है। जब जब धरती ग्रसित हुई काल बलवान हुआ, मां सरस्वती ने ज्ञान प्रदान कर धरती की रक्षा की है। भारती, शारदा, वाग्देवी, वागीश्वरी, वीणा वादिनी वीणा पाणी, हंस वाहिनी, विद्या दात्री, पुस्तक धारिणी, विद्या प्रदायिनी, मेधा, श्वेत पद्मासना, सरस्वती आदि विद्या की देवी के अनेक प्रसिद्ध नाम है।
दरअसल, वेद की उत्पत्ति सरस्वती से हुई है। वेदों से समस्त लोकों का आविर्भाव होता है, सरस्वती की श्वेत वर्ण प्रेरणा का अभिप्राय है। सरस्वती के एक हाथ में वीणा और दूसरे में पुस्तक होती है। वीणा धारण करने का अभिप्राय है कि भावना क्षेत्र में ऐसी झंकार होनी चाहिए, जो मधुर ध्वनि से उसे मुग्ध कर दे। पुस्तकों से जो ज्ञान प्राप्त करे, उसे अपनी ह्रदय रूपी वीणा के तारों से झंकृत करते हुए श्रद्धा, विश्वास, भक्ति और आचरण के साथ जोड़ दें।
इनका मुख्य वाहन हंस माना गया है। उप वाहन के रूप में मोर की गणना होती है। हंस का अर्थ है अंधकार से प्रकाश में आना, इसका रहस्य है सद्गुणों को धारण करना और अवगुणों को तिरस्कृत कर देना। उप वाहन मोर विद्या, कला, संस्कृति का प्रतीक है। मोर को ज्ञान, विवेक और परोपकार का प्रतिनिधि माना गया है।
वसंत पंचमी के इस पावन दिन पर देश के विभिन्न हिस्सों में मां सरस्वती की पूजा अर्चना की गई वहीं झारखंड के चाईबासा स्थित गैर सरकारी संस्था दर्शन मेला म्यूजियम डेवलपमेंट सोसायटी की प्रमुख उपलब्धि पाठक मंच के सदस्यों ने भी मां की अराधना कर आशीर्वाद लिया, परंतु कोरोना के कारण सांस्कृतिक व अन्य कार्यक्रमों का आयोजन नहीं किया गया।