मूर्ख बातूनी कछुआ

उदयराज सिंह

एक तालाब में एक कछुआ रहता था , और उसी तालाब में दो हंस भी तैरते थे। हंस बहुत ही हंसमुख और मिलनसार थे। कछुऐ और हंसों में दोस्ती हो गई। हंसो को कछुए का धीरे – धीरे चलना और उसका भोलापन बहुत अच्छा लगता था। हंस बहुत ज्ञानी भी थे , वे कछुए को अद्भूत बातें भी बताते थे। ऋषि – मुनियों की कहानियां सुनाते थे। हंस दूर – दूर तक घूम कर आते थे इसलिए कछुए को अनोखी बातें बताते थे , और कछुआ भी उनकी बातें बड़े ध्यान से सुनता था। किन्तु कछुआ बीच में टोका – टाकी बहुत करता था। उसके सज्जन स्वभाव के कारण हंस भी उसकी बात का बुरा नहीं मानते थे। एक बार बड़े जोर से सूखा पड़ा। बरसात के मौसम में भी एक बूंद पानी नहीं बरसा। उस तालाब का पानी भी सूखने लगा। एक समय ऐसा आया कि उस तालाब में केवल कीचड़ रह गया।

मछलियां भी तड़प – तड़प कर मरने लगी। कछुआ बड़े संकट में पड़ गया। जीवनमरण का प्रश्न खड़ा हो गया था। वहीं पड़ा रहेगा तो मर ही जायेगा इसलिए हंसों ने उसके बचाने का उपाय सोचा और दूर – दूर तक उड़कर समस्या का हल ढूंढने लगे तब एक दिन हंसों ने कछुए को कहा – यहां से 50 कोस दूर एक झील है , उसमें काफी पानी है तुम वहां मजे से रहोगे। तब कछुए ने उदास होकर कहा इतनी दूर जाने में तो मुझे महीनों लग जायेगा। तब तक तो मैं मर ही जाऊंगा। तब हंसों ने एक तरकीब सोची और वो एक लकड़ी उठाकर लाए और कछुए से कहा , मित्र हम दोनों चोंच से इस लकड़ी को पकड़कर एक साथ उड़ेगे तुम इस लकड़ी को बीच में से पकड़ कर थामें रहना। इस प्रकार हम तुम्हें उस झील तक पंहुचा देंगे। इसके बाद तुम्हे कोई चिन्ता नहीं रहेगी ,

किन्तु यह ध्यान रखना कि उड़ान के समय अपना मुंह मत खोलना वरना नीचे गिर जाओगे। कछुओं ने हां कर दी और वे तीनों उड़ने लगे। वे तीनों एक कस्बे के ऊपर उड़ रहे थे तभी जमीन पर खड़े लोगों ने अद्भुत नजारा देखा। सब एक दूसरे को आकाश का दृश्य दिखाने लगे। धरती पर कोई छत से , तो कोई छज्जे से उन्हें देखने लगे , खूब शोर हो गया। तभी कछुए की नजर नीचे उन लोगों पर पड़ी जो उसे देख रहे थे।

वह प्रसन्न होकर अपने मित्र की चेतावनी को भूल गया और चिल्लाया – देखो कितने लोग हमें देख रहे हैं। मुंह के खुलते ही वह नीचे गिर गया और मर गया।