बिहार में मिल रहे बदलाव के संकेत।

उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव के बाद बिहार में बदलाव अब तय है।

डॉ.समरेन्द्र पाठक

वरिष्ठ पत्रकार।

लखनऊ 20 जनवरी 2022 एजेंसी)।

उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव के बाद बिहार में बदलाव अब तय है। राज्य में सत्तारूढ़ राजग के प्रमुख घटक भाजपा ने इसके लिए पूरी तरह से मन बना लिया है,क्योंकि बिहार के घटक दल निरंतर पार्टी के लिए संकट उत्पन्न कर रहे हैं। भाजपा के एक शीर्ष नेता ने आज यहां इस आशय का संकेत देते हुए कहा कि यूपी चुनाव में बिहार के घटक दलों ने जिस तरह से भाजपा को नुकसान पहुंचाने की कोशिश में हैं,उसके बाद बिहार में संबंध बरकार रखना कतई ठीक नहीं है और अब बदलाव तय है।

उन्होंने यह भी कहा कि बदलाव से वीआईपी एवं हम पूरी तरह से खत्म हो जायेगा और जदयू भी बिखड़ जायेगा। दरअसल, जनता दल यूनाइटेड,हम एवं वीआईपी, यूपी चुनाव में एक के बाद एक समस्या खड़ी कर भाजपा के लिए संकट पैदा करते रहे हैं।

भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने इसके लिए इन दलों के नेताओं को साफ तौर पर संदेश दे दिया है। इसके बाद से बिहार में राजग गठबंधन के दलों के बीच जुबानी जंग तेज है। जदयू 51 सीटों पर प्रत्याशी उतारने की बात कहकर भाजपा से यूपी में कुछ सीटें हासिल करना चाहता है,लेकिन भाजपा की ओर से कोई सकारात्मक जबाव नहीं मिला है। भाजपा अपना दल एवं निषाद पार्टी के अलावा अन्य दलों से बातचीत के मूड में नहीं है। हालांकि जदयू को अभी भी कुछ सीटें मिलने की उम्मीद है।

इसी तरह मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी ने 165 सीटों पर प्रत्याशी खड़े किये जाने की घोषणा की है। कुछ उम्मीदवारों की सूची भी जारी कर दी गयी है, मगर उन्हें साफ संकेत दे दिया गया है कि अब बिहार में न सिर्फ उनकी पार्टी टूट जायेगी बल्कि उन्हें मंत्री पद से भी हाथ धोना पड़ेगा। भाजपा इस बात से भी हैरान है कि आखिर सहनी को फंडिंग कौन और कहां से कर रहा है?

इससे पहले हम सुप्रीमो जीतन राम मांझी ने ब्राह्मण एवं मर्यादा पुरुषोत्तम राम के बारे में अमर्यादित बयान देकर भाजपा के लिए समस्या खड़ी करने की कोशिश की थी,लेकिन लोगों की तीखी प्रतिक्रिया से वह अपने ही जाल में फंस गए। हालात इतने बिगड़ गये कि मांझी को बैक फुट पर आना पड़ा।

इस बीच यूपी के चुनावी जंग में भाजपा फिर से वापसी के लिए जहाँ अपने द्वारा कराये गए कार्यों को गिना रही है, वहीँ अयोध्या में राम मंदिर निर्माण एवं जातीय समीकरण को साधने में जुटी है। सांप्रदायिक ध्रुवीकरण भी बड़ा फैक्टर है।

उधर ज्यों-ज्यों यूपी विधान सभा चुनाव नजदीक आ रहा है,जातियों का गोलबंद होना शुरू हो गया है। सपा मुस्लिम-यादव-ब्राह्मण समीकरण को लेकर आगे बढ़ रही है।  बसपा अपने दलित वोट को नए सिरे से संगठित कर रही है। कांग्रेस अपने परंपरागत वोट को जोड़ने में लगी है,वहीँ ओबैसी की पार्टी एवं आप इस बीच का फायदा उठाने की कोशिश में है। इसके अलावा कई छोटे दल भी मैदान में है।

यूपी की राजनीति में इन दिनों सबसे बड़ा फैक्टर ब्राह्मण मतदाता को लेकर है। इनका वोट प्रतिशत  13-14 है। यह जिन्हें वोट करते हैं,उन्हें सत्ता की चाभी मिलती है। वैसे ब्राह्मण समाज के कद्दावर नेता हरिशंकर तिवारी इस बार सपा का दामन थाम चुके हैं।

भाजपा ने अपने राज्य स्तर के दो ब्राह्मण नेता उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा एवं कानून मंत्री ब्रजेश पाठक को इस काम में लगाया है, मगर यह कितना कामयाब होंगे, वक्त ही बताएगा। वैसे स्वामी प्रसाद मौर्य सहित दर्जनों नेताओं के भाजपा से निकलने से भी असर पड़ा है। हालांकि मुलायम परिवार की बहू अपर्णा यादव को भाजपा में शामिल कर सपा को करारा झटका दिया गया है।

बहरहाल यूपी चुनाव की कमान एक बार फिर अमित शाह थाम चुके हैं। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में अमित शाह के नेतृत्व में राजग गठबंधन को 80 लोकसभा सीटों में से 73 सीटें मिली थी। उसी तरह 2017 के विधानसभा चुनाव में शाह की अगुआई में राजग गठबंधन को 325 सीटें मिली थी। हालांकि वर्ष 2019 के  लोकसभा चुनाव में सीटों का ग्राफ 80 से गिरकर 67 रह गया।

 

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