संबंध जीवन की सबसे बड़ी थाती होते हैं। वस्तुत: मनुष्य के जीवन में और अन्य सब प्राणियों के जीवन में यही मूलभूत अंतर है कि मनुष्य के पास संबंध होते हैं। इसके बावजूद वर्तमान समय में व्यक्ति संबंधों को ही गंवा रहा है। अक्सर हम लोगों को कहते हुए सुनते हैं कि सब रिश्ते बेकार हैं। कोई काम नहीं आता। किसी को किसी से कोई प्रेम नहीं है। रिश्ते सब मतलब के हैं। किसी के पास दूसरों के लिए समय नहीं है।
क्या वास्तव में ऐसा ही है?
रिश्ते क्या सच में इतने कमजोर हो गए हैं?
आखिर क्या कारण है कि रिश्तों में वह गर्माहट नहीं रह गई है, जिसकी उम्मीद की जाती है?
कमजोर होते रिश्तों का समाधान क्या है?
क्या कोई ऐसी राह नहीं है जिस पर चलकर रिश्तों का संभाला जा सके?
समाधान है।
इसका समाधान भी हमारी ही पिछली बातों में छिपा है। ‘किसी के पास दूसरों के लिए समय नहीं है…’ असल में इसी बात में समाधान है। हम यह तो उम्मीद करते हैं कि लोग हमारे साथ अपने संबंधों को समय दें, लेकिन हम स्वयं उन्हें समय नहीं देते हैं।
कहा जाता है कि रिश्ते और जूते हमेशा पॉलिश मांगते हैं। जूता कितनी भी अच्छी क्वालिटी का हो, अगर आप समय-समय पर पॉलिश नहीं करते हैं, तो अंतत: वह खराब हो ही जाता है।
अगर ज्यादा लंबे समय तक अनदेखी कर दी जाए, तो बाद में पॉलिश भी काम नहीं आती।
खूबसूरत रिश्ते भी ऐसे ही होते हैं। उन्हें समय देना जरूरी है। इस बात की प्रतीक्षा मत कीजिए कि सामने वाला आपको समय दे, अच्छा होगा कि आप स्वयं आगे बढ़कर समय दें।
रिश्तों को संवारने में पहले आप, पहले आप वाली नीति सही नहीं है। इसमें हमें स्वयं पहल करनी होती है। रिश्तों को संभालना और संवारना है तो मन में कोई अहम न रखें। अहम किसी भी रिश्ते को खत्म कर देने वाला जहर है।
रिश्तों को समय दें और समय देने वाले रिश्तों को अहमियत दें। उन संबंधों का सम्मान करें जो आपको समय देते हैं। कोई भी इसलिए आपको समय नहीं देता है, क्योंकि उसके पास बहुत समय है, बल्कि वह इसलिए समय देता है, क्योंकि उसे आपके साथ अपने संबंधों को बनाए रखने में रुचि है।
(समाधान है… कॉलम में ऐसे ही अनुत्तरित लगने वाले प्रश्नों के समाधान पाने का प्रयास होगा। प्रश्न आप भी पूछ सकते हैं। प्रश्न जीवन के किसी भी पक्ष से संबंधित हो सकता है। प्रश्न भाग्य-कर्म के लेखा-जोखा का हो या जीवन के सहज-गूढ़ संबंधों का, सबका समाधान होगा। बहुधा विषय गूढ़ अध्यात्म की झलक लिए भी हो सकते हैं, तो कई बार कुछ ऐसी सहज बात भी, जिसे पढ़कर अनुभव हो कि यह तो कब से आपकी आंखों के सामने ही था। प्रश्न पूछते रहिए… क्योंकि हर प्रश्न का समाधान है।)