पूजा पपनेजा।
दुनिया मे कुछ ऐसी कहानियाँ होती है जो आपके दिल को छू जाती है आज हम आपसे एक ऐसी ही कहानी के बारे मे चर्चा करने वाले है ये कहानी प्रियांशी शर्मा की है जिसे मेरी मुलाकात दिल्ली एम्स मे हुई थी वह एम्स हॉस्पिटल मे किसी का इलाज करवाने आई थी। फिर मैंने जब उनकी कहानी सुनी तो मुझे लगा आपसे इस कहानी के बारे मे चर्चा करनी चाहिए तो अब आपको प्रियांशी वर्मा की कहानी के बारे मे बताते है।
प्रियांशी वर्मा का संघर्ष।
ये कहानी प्रियांशी की है। जो गुजरात मे सूरत की रहने वाली है उसकी उम्र मात्र 20 वर्ष है वैसे तो बहुत छोटी सी उम्र मे ही उसने अपने माता पिता खो दिए थे। जिस वजह से उसने सिर्फ कक्षा 6 तक ही पढ़ाई की थी और वह अपनी आगे की शिक्षा भी पूरी नहीं कर पाई थी। क्योकि उसे आगे बढ़ाने वाला भी कोई नहीं था।
इसके साथ ही आपको यह भी बता दें कि प्रियांशी पैरो से विकलांग है और उसका कोई भाई बहन भी नहीं है वह अपने माता पिता की एक अकेली बेटी थी और बहुत छोटी सी उम्र मे ही उसके ऊपर ज़िम्मेदारी आ गई थी।
प्रियांशी वैसे तो वीलचेयर के ज़रिये लोगो को घर पर खाना बेचने का काम करती है और अपनी सारी कमाई अनाथ आश्रम मे दें देती है।
लेकिन सबसे खास बात ये है कि प्रियांशी ने विकलागंता को कभी भी अपनी कमज़ोरी नहीं समझा है बल्कि उसे उसने अपनी ताकत बनाया है। इसके साथ ही मातापिता जाने के बाद भी उसने अपनी ज़िन्दगी को एक नई दिशा दी है जिसमे उसने दूसरो के लिए जीना शुरू किया है।
लेकिन प्रियांशी का एक सपना है वह एक ऐसा अनाथ आश्रम खोलना चाहती है जिसमे वह अनाथ बच्चों को शिक्षित कर सके क्योकि उसका मानना है कि मैं तो शिक्षित नहीं हो सकी लेकिन मै दूसरे बच्चों को शिक्षित करुँगी ताकि मुझ जैसे बच्चे भी आगे बढ़ सके।