नेवले उनके घर मे आते है

कोपलो के यहाँ जनम दिन पर
लोग खुशियों के गीत गाते है।
सूखे पत्ते मरे गिरे बिखरे।
उनकी मैय्यत मे कौन जाते है ?
खास भी भीड़ बन रही
लेकिन आम को वो नहीं बुलाते है।
वो हमें गले से लगाते है।
इस तरह हमको आजमाते है।
दुश्मनों आओ काट लो गर्दन।
दोस्त अब हर घड़ी रुलाते है।
छोड़ पाते न हम उम्मीदे – वफ़ा।
इसलिए रोज मार खाते है।
साँप से बढ़ गया है डर ज्यादा।
नेवले उनके घर मे आते है।
उपयुक्त पंक्तियां स्व. विनोदा नन्द झा की लिखित पुस्तक इन्द्रधनुष से ली गई है।