कुछ दिनों पहले जो दिल्ली में एक अलग सी चहलकदमी थी, अब 8 तारीख के नतीजे के बाद अजीब से सन्नाटे, शांति, सुकून और मन ही मन चल रहे कौतूहल में बदल गई है। एक पार्टी जो जीत की उम्मीद में जोश में नजर आ रही थी, हार से सन्नाटे में आ गई। एक को मिली जीत ने सत्ता पाने के लंबे संघर्ष ने शांति दी तो वहीं किसी को इतना सुकून मिला कि चलो जिस भ्रष्टाचार के नाम पर हराया गया आज उसी के लिये सत्ताधारियों को हार का मुंह देखना पड़ा।
अब बात करते हैं मन ही मन चल रहे कौतूहल की, जो इस समय आम जन के अंदर है। 8 फरवरी को चुनाव परिणाम आने के बाद 9 फरवरी की सुबह सब्जी वाले की आवाज सुनकर सब्जी के लिये रोका। आलू और प्याज छांट-छांटकर निकालते हुए उसने कहा…बीजेपी जीत गई। मैंने कहां, हां, जीत गई। फिर वह शांत हो गया। मेरा ध्यान सब्जी खरीदने पर ही था, पर अचानक मेरे अंदर का पत्रकार जागा और मैने अनायास पूछ लिया। अच्छा, एक बात बताओ भईया।
बीजेपी जीत गई तो क्या आप खुश हो ? उसने कहा ठीक ही है जीत गई, लेकिन पहले वाले भी अच्छे ही थे। ठीक काम कर रहे थे। बसों में बच्चे(बच्चियां) फ्री टिकट के यात्रा करके कहीं भी चली जाती थीं। वह गरीबों की सरकार थी। मैंने पूछा और ये(बीजेपी) वाले। उसने कुछ सोचा और कहा कि ज्यादा क्या पता लेकिन इन्होंने भी कहा है, जो फ्री चल रहा था, देंगे। इन्होंने तो अपनी घोषणाओं में 2500 देने की भी बात की थी। हमें लगता है कि जो चल रहा था, चलने देंगे। फिर मेरी ओर सहमति पाने के लिये एक नजर देखा। मैने भी सिर हिला दिया। हां भई चलने देंगे। इन्होंने भी तो वादे किये हैं।
इन बातों का निष्कर्ष बस इतना है कि दिल्ली में एक बड़ा तबका जो पिछले दस वर्षों में बिजली, पानी के बिल अदा करने के झंझट से दूर रहा, कुछ सहूलियतें पाई, आज नतीजे के बाद इस संशय में है कि क्या अब सब कुछ बदलने वाला है। तो जानकार यह बताते हैं, कि बीजेपी के लिये 27 साल बाद दिल्ली में सरकार बनाने के लिये बहुमत पाना जितना संघर्ष भरा रहा, उतना ही मुश्किल चुनाव मे किये गये वादों को हकीकत की जमीन पर उतारना है, फिर भी वह करेगी।
उसे एक ऐसी सुनियोजित रणनीति बनानी होगी, जिसपर चलकर वह जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरने के साथ एक विकसित दिल्ली का निर्माण कर सके। उनके अनुसार अब कोई भी सरकार आयेगी, दिल्लीवासियों को मिल रही सुविधाओं को कम करने की हिम्मत नहीं करेगी। उसे तार्किक बनाया जा सकता है, जैसे अगर कोई संपन्न है तो उसे मुफ्त की क्या आवश्यकता होगी।
इसे चयनित रूप में लागू किया जा सकता है। वास्तव में दिल्लीवासी दिल्ली को एक शानदार जगह में बदलते हुए तो जरूर देखना चाहते हैं, मगर पिछले 10 वर्षों में जो उन्हें कुछ बुनियादी सुविधाएं मिलीं, उसमें कटौती की आशंका से भी ग्रसित हैं। हालांकि बीजेपी के जीतने वाले विधायकों के साथ शीर्ष नेता भी अपने सभी वादों को पूर्ण करने की बात कर रहे हैं। लिहाजा, देखना होगा कि दिल्ली में मुख्यमंत्री के चयन और सरकार के गठन के बाद विकास कार्यों को किस प्रकार गति दी जाती है। फिलहाल, दिल्ली को इस डबल इंजन की सरकार से विकास की दरकार है।
गौरतलब है कि दिल्ली की 70 सीटों पर 5 फरवरी को मतदान हुए, जिसमें बीजेपी को 48 सीट, आप को 22 सीटें मिलीं वहीं कांग्रेस एक भी सीट नहीं हासिल कर पाई।