स्वतंत्रता ,

सैकड़ों ने बलिदान दिये, अपने प्रधान मुखिया को देखा ।
करोडो को आजादी मिली, बुलेट प्रूफ पिंजरे से निकलते हुए ।
देश स्वतंत्र हुआ, बुलेट प्रूफ कपड़ो, से सजे ।
भारत माता स्वतंत्र हुई, बुलेट प्रूफ पारदर्शी दीवारों से घिरे ।
हम भी स्वतंत्र हुए, हाथ उठा उठाकर ।
खुले आकाश मे उडते जोर से बोलते हुये ।
पंछी को देखकर हम स्वतंत्र है।
पहली बार शायद आँखे छलछला गई।
उन्मुक्तता का बोध हुआ, …. कुछ ने देखा तो कहा।
स्वतंत्रता के कारण हम कैसे पागल हो भाई,
स्वतंत्र हुए चुनने को आज के दिन रात हो ?
स्वतंत्रता से चुना भी स्वतंत्रता दिवस के प्रागण से।
अपने अपने क्षेत्र का मुखिया भरभराई आवाज़ मे ही।
फिर चुना मुखियों ने कहा, मैंने –
अपना प्रधान मुखिया , ये आँसू ख़ुशी के है ,
आज स्वतंत्रता की स्वतंत्रता की खुशी के।
पचासवीं वर्षगॉठ पर अपना प्रधान आज,
लाल किले की प्राचीर से कितना स्वतंत्र, है।
झंडोतोलन हेतु पचाससाला प्रौढ़ व उनतिशील,
और देशवासियो को क्या यही प्रजातंत्र, है ?
सम्बोधित करने हेतु,

उपयुक्त  पंक्तियां स्व. विनोदा नन्द झा की लिखित पुस्तक इन्द्रधनुष से ली गई है।