अमित मिश्रा, नई दिल्ली
छठ पूजा में बिहार से बाहर रहने वाले अधिकतर लोग वापस अपने घर लौटते हैं। इसमें मजदूर वर्ग से लेकर मध्यम और उच्च वर्ग के लोग भी शामिल है। मध्यम और उच्च वर्ग के लोग तो छठ समाप्त होने के बाद शीघ्र ही अपने काम पर लौट आते है। ज्यादातर पूजा समाप्त होने के एक सप्ताह के अंदर। लेकिन मजदूर वर्ग के लोग अक्सर महीनों बाद अपने काम पर लौटते हैं।
ऐसे लोगों की तादाद हजारों में नहीं लाखों में है। चाहे वह दिल्ली हो या मुंबई हर जगह छठ के महीनों में मजदूर वर्ग से जुड़े हुए काम लगभग ठप रहते हैं। इसका महानगरों के दिनचर्चा पर सीधा असर देखने को मिलता है। ऐसे में यह सवाल पैदा होता है कि क्या महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दलों का खेल बिगाड़ने का काम छठ पूजा के लिए गए ‘भैय्याजी’ करेंगे।
महाराष्ट्र में 20 नवंबर को विधानसभा चुनाव है। मुंबई, पूणे जैसे बड़े—बड़े महानगरों में इन ‘भैय्यो’ की तादाद काफी है। लंबे समय से कामगार स्थलों पर निवास करने के कारण इनमें से अधिकतर लोगों ने मतदाता पहचान पत्र बनवाने में सफलता हासिल कर रखी है। राजनीतिक दलों के लिए यह वोट बैंक का काम करते है। इसलिए इनके मतदाता पहचान पत्र बनवाने में राजनीतिक दल काफी सक्रिय रहते हैं।
मतदान में इनकी भागीदारी 90 फीसदी से अधिक रहती है। सभी राजनीतिक दल इस वोट बैंक पर अपना दावा जताते हैं। फिलहाल भाजपा इसे अपना वोट बैंक मान रही है। लोकसभा चुनाव में इस वोट बैंक का झुकाव भाजपा की ओर देखा भी गया था। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस भी इस वोट बैंक पर अपना दावा जताती है।
शिवसेना और एनसीपी के दोनों गुटों को इस वोट बैंक से कोई विशेष लाभ नहीं मिलता है। हालांकि उद्धव ठाकरे ने इस वोट बैंक से थोड़ी नजदीकियां बढ़ाने में सफलता हासिल की है, पर अभी भी यह वोट बैंक शिवसेना के दोनों गुटों में से किसी पर भी भरोसा नहीं करता है।
छठ पूजा 7 और 8 नवंबर को मनाया जा रहा है। इस पूजा की समाप्ति के बाद सामान्य से लेकर विशेष रेलगाड़ियां तक में टिकटों की मारामारी है।
मतदान तक लौटना मुश्किल
इसलिए बहुत ज्यादा जरूरत वाले लोग ही जैसे तैसे टिकट की व्यवस्था कर पूजा समाप्ति के एक सप्ताह बाद अपने कामों पर लौट आते हैं। बाकी लोग ज्यादातर महीने दो महीने बाद ही लौटते हैं, जबकि पूजा समाप्ति के ठीक 12 वें दिन विधानसभा का चुनाव हैं। इस दौरान 40—50 प्रतिशत से ज्यादा लोगों का वापस लौट पाना मुश्किल लग रहा है।
खासकर मतदान में उत्साह से भाग लेने वालों का वापस आना संभव नहीं दिख रहा है। चुनावी पर्व में सबसे ज्यादा भाग लेने वाले लोग गरीब वर्ग के होते हैं। उच्च वर्ग के लोगों का प्रतिशत सबसे कम होता है। दूसरे स्थान पर मध्यम वर्ग के लोग होते हैं। यही वजह है राजनीतिक दलों की निगाहें सबसे अधिक गरीब वर्ग पर ही टिकी रहती है। उनकी घोषणाओं में उन्हीं के लिए अधिकतर वादे भी होते हैं।
रेलवे ने विशेष रेलगाड़ियां चलाकर ऐसे लोगों को वापस आने की पूरी व्यवस्था कर रखी है। लेकिन विशेष रेलगाड़ियों के बावजूद छठ पूजा पर घर जाने में जिन दिक्कतों का सामना इन लोगों को करना पड़ा है, उसे भूलना आसान नहीं है। इसलिए इनके जल्दी लौटने की उम्मीदें कम है। वैसे भी यह लोग साल में एक ही बार घर जाते हैं।
घर जाने के बाद कुछ दिनों तक वहां टिके रहना इनकी मजबूरी होती है। घर के कई सारे अधूरे कामों को पूरा करना इनकी जिम्मेवारी होती है। यह काम पूरा होने के बाद ही ये लोग वापस अपने काम पर लौटने की योजना बनाते हैं। इसमें कई बार एक से दो महीने तक का समय लग जाता है। इस दौरान महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव संपन्न हो जाएगा। प्रदेश के कई महानगरों में वोट प्रतिशत से इसका अनुमान लगाया जा सकता है।
राजनीतिक दल, ‘भैय्याओं’ के इस वोट बैंक को भुनाने में पूरी तरह से जुटे हुए हैं। इनको लुभाने के लिए उत्तर प्रदेश और बिहार के अधिकतर नेताओं को लगाया गया है। भाजपा ने इसके लिए योगी आदित्यनाथ को लगाया है। साथ ही भाजपा अपने सहयोगी व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी चुनावी प्रचार में उतारकर इस वोट बैंक को साधने से गुरेज नहीं करेगी। वहीं कांग्रेस ने बिहार के कुछ नेताओं को इस काम में लगाया है। हालांकि कांग्रेस के पास ऐसा कोई बड़ा चेहरा नहीं है।