नई दिल्ली।
दिल्ली के एक नामचीन प्राइवेट सीनियर सेकेंडरी स्कूल में 4 वर्षीय बच्चे को EWS कोटा के तहत प्रवेश नहीं दिये जाने पर हाईकोर्ट ने इसे गंभीरता से लेते हुए अपने अंतरिम आदेश में स्कूल को बच्चे को नर्सरी कक्षा में दाखिला देने और मामले के अंतिम समाधान तक सभी आरटीई अधिकार प्रदान करने का निर्देश दिया है।
गौरतलब है कि सभी स्कूलों में शिक्षा का का अधिकार(आरटीई) अधिनियम के तहत आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग(ईडब्ल्यूएस) को विशेष कोटा दिया गया है। इसके अनुसार स्कूल में कुछ सीटें EWS के लिये संरक्षित रहती हैं। लेकिन समय समय पर ऐसे मामले आते रहते हैं, जिनमें स्कूल द्वारा नामांकन दिये जाने में आनाकानी की जाती है।
ऐसा ही मामला रोहिणी के एक प्रसिद्ध स्कूल का आया, जहां ईडब्ल्यूएस कोटा के तहत 4 वर्षीय अयान सैफी को नर्सरी की कक्षा में दाखिला नहीं दिया गया। इसके लिये अयान के पिता शाहिद ने कोर्ट में याचिका लगाई, जिसकी वकालत एडवोकेट अमन शर्मा ने की।
माननीय न्यायाधीश स्वर्ण कांता शर्मा की अध्यक्षता में दिल्ली उच्च न्यायालय ने प्रतिवादी स्कूल द्वारा आरटीई अधिनियम के घोर उल्लंघन पर ध्यान दिया, जिसने याचिकाकर्ता के 4 वर्षीय बच्चे का नाम शॉर्टलिस्ट होने के बावजूद उसे प्रवेश देने से इनकार कर दिया।
शैक्षणिक वर्ष 2024-2025 के लिए डीओई द्वारा कम्प्यूटर से ड्रा निकाला गया। स्कूल ने बिना किसी ठोस कारण के प्रवेश से इनकार कर दिया, जिससे याचिकाकर्ता को न्याय के लिये अदालत जाने के लिये मजबूर होना पड़ा।
इस मामले में याचिकाकर्ता के वकील अमन शर्मा ने अपने तर्क में आरटीई अधिनियम के अनुसार अनिवार्य ईडब्ल्यूएस कोटा को बनाए रखने की आवश्यकता पर जोर देते हुए स्कूल के रवैये को संविधान के अनुच्छेद 21-ए के तहत बच्चे के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया।
इस बारे में एडवोकेट शर्मा ने कहा कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों को उनकी शिक्षा से वंचित करना न केवल शिक्षा के अधिकार अधिनियम के खिलाफ है, बल्कि इसके कारण पहले से ही सामाजिक एवं आर्उथिक चुनौतियों का सामना कर रहे लोगों के लिये और भी मुश्किल पैदा होती है।
इस मामले की सुनवाई करते हुए अदालत ने रामेश्वर झा बनाम प्रिंसिपल रिचमंड ग्लोबल स्कूल (2022) मामले में भी इसी तरह के फैसले का संदर्भ दिया, जिसमें चेतावनी दी गई कि ईडब्ल्यूएस प्रवेश से इनकार करने वाले स्कूलों को दिल्ली स्कूल शिक्षा अधिनियम, 1973 के तहत दंडात्मक कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है।
2009 में अधिनियमित आरटीई अधिनियम के तहत निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूल ईडब्ल्यूएस और वंचित समूहों (डीजी) के बच्चों के लिए अपनी 25% सीटें आरक्षित करते हैं, जिससे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक समान पहुंच सुनिश्चित होती है।
हालाँकि, हाल के वर्षों में ऐसे कई मामले सामने आए हैं जहाँ विशेषरूप से दिल्ली के विभिन्न स्कूल में, इस प्रावधान का उल्लंघन किया गया और इस कानून के तहत आने वाले बच्चों को स्कूल में प्रवेश देने से इनकार कर दिया।
मार्च 2024 में दिल्ली उच्च न्यायालय के एक हालिया फैसले ने ईडब्ल्यूएस प्रवेश के लिए आय सीमा को ₹2.5 लाख प्रति वर्ष तक संशोधित कर दिया। इन दिशा-निर्देशों के बावजूद अधिकांश निजी स्कूलों में इसका पालन नहीं किया गया, जिससे ईडब्ल्यूएस छात्रों के अधिकारों को लागू करने के लिए कानूनी कार्रवाई की आवश्यकता है।
इस संबंध में शिक्षा कानून और मौलिक अधिकार मामलों के विशेषज्ञ, एडवोकेट शर्मा ने शिक्षा निदेशालय (डीओई) और न्यायपालिका से यह सुनिश्चित करने के लिए कड़े कदम उठाने का अनुरोध किया कि स्कूल आरटीई अधिनियम के तहत ईडब्ल्यूएस कोटा में एडमिशन देना सुनिश्चित करे।
गौरतलब है कि यह मामला आरटीई अधिनियम के तहत निजी स्कूलों को उनके कानूनी दायित्वों के लिए जवाबदेह बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस मामले में हाई कोर्ट ने अगली सुनवाई 5 नवंबर 2024 तय की है।