चिन्मय दत्ता, चाईबासा, झारखंड।
24 सितम्बर 1861 को बम्बई में एक पारसी परिवार में मैडम भीकाजी रुस्तम कामा का जन्म हुआ। इन्होंने श्रेष्ठ समाज सेवक दादाभाई नौरोजी के यहां सचिव के पद पर कार्य किया। इनका नाम क्रांतिकारी आंदोलन में विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इन्होंने विदेश में रहकर भी भारतीय क्रांतिकारियों की भरपूर मदद की थी। इनके ओजस्वी लेख और भाषण, क्रांतिकारियों के लिए अत्यधिक प्रेरणा स्रोत बने।
ये ‘भारतीय राष्ट्रीयता की महान पुजारिन’ के नाम से विख्यात थीं वहीं इनके सहयोगी इन्हें ‘भारतीय क्रांति की माता’ मानते थे। इन्होंने रुस्तम आर. के. कामा से विवाह किया। कहीं अंग्रेज सरकार इन्हें गिरफ्तार न कर ले इसलिए ये फ्रांस चली गई और वहां पेरिस से ‘वंदे मातरम’ नामक क्रांतिकारी अखबार का प्रकाशन प्रारंभ किया जो प्रवासी भारतीयों में काफी लोकप्रिय हुआ और फ्रांसीसी अखबारों में इनका चित्र जोन ऑफ आर्क के साथ आया।
मैडम भीकाजी रुस्तम कामा अपने क्रांतिकारी विचार अखबार ‘वंदे मातरम’ और ‘तलवार’ में प्रकट करती थी । इससे स्पष्ट होता है कि इनमें धैर्य, साहस और देशभक्ति कूट-कूट कर भरी थी। ये 1902 में इंग्लैंड गई और वहां ‘भारतीय होम रूल समिति’ की सदस्य बनी फिर स्कॉटलैंड, लंदन और जर्मनी की यात्राएं की।
ये जर्मनी के स्टेटगार्ट नगर में 22 अगस्त 1907 में आयोजित हुई इंटरनेशनल सोशलिस्ट कांफ्रेंस में तिरंगा फहराने के लिए सुविख्यात हैं जिसके लिए इन्हें ‘क्रांति-प्रसूता’ कहा जाने लगा। इस झंडे को वीर सावरकर ने अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर बनाया था। 13 अगस्त 1936 को बम्बई में इनका प्राणांत हो गया फिर भारत सरकार ने डाक टिकट जारी कर इन्हें श्रद्धांजलि अर्पित किया।
उपर्युक्त जानकारी मैडम भीकाजी कामा की जयंती पर पाठक मंच के कार्यक्रम इन्द्रधनुष की 797वीं कड़ी में मंच की सचिव शिवानी दत्ता की अध्यक्षता में दी गई।
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