यूपी चुनाव में भाजपा के लिए संकट बने बिहार के सहयोगी।

डॉ.समरेन्द्र पाठक

वरिष्ठ पत्रकार।

लखनऊ,26 दिसंबर 2021(एजेंसी)। बिहार में राजग के घटक जनता दल यूनाइटेड,जीतन राम मांझी की पार्टी हम एवं मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी, यूपी में सत्तारूढ़ भाजपा के लिए एक के बाद एक संकट पैदा कर रही है।

भाजपा राज्य में फिर से वापसी के लिए  जहाँ अपने द्वारा कराये गए कार्यों को गिना रही है,वहीँ अयोध्या में राम मंदिर निर्माण एवं जातीय समीकरण को साधने में जुटी है,लेकिन बिहार में भाजपा से मिलकर सरकार चला रहे नेता लगातार यूपी में समीकरण बिगाड़ने में लगे है। इस समस्या से यूपी में भाजपा के शीर्ष नेतृत्व पशोपेश की स्थिति में है।

यूपी भाजपा के एक शीर्ष नेता ने कल कहा कि जदयू के नेता संजय झा ने यूपी में चुनाव लड़ने का संकेत दिया है। मांझी ने ब्राह्मणों के खिलाफ नफरत भरी टिप्पणी एवं भगवान राम के अस्तित्व को नकार कर नया संकट पैदा कर दिया है। सहनी पिछले छह महीने से पूर्व दस्यु सुंदरी फूलन देवी को लेकर स्वयं मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के स्वजातीय को चिढ़ाने में लगे हैं।

उधर ज्यों-ज्यों यूपी विधान सभा चुनाव नजदीक आ रहा है,जातियों का गोलबंद होना शुरू हो गया है। सपा मुस्लिम-यादव-ब्राह्मण समीकरण को लेकर आगे बढ़ रही है। बसपा अपने दलित वोट को नए सिरे से संगठित कर रही है। कांग्रेस अपने परंपरागत वोट को जोड़ने में लगी है, वहीँ ओवैसी की पार्टी एवं आप इस बीच का फायदा उठाने की कोशिश में है। इसके अलावा कई छोटे दल मोर्चा बनाकर मैदान में कूदने को आतुर है।

यूपी की राजनीति में इन दिनों सबसे बड़ा फैक्टर ब्राह्मण मतदाता को लेकर है। इनका वोट प्रतिशत 13-14 है। ये जिन्हें वोट करते हैं,उन्हें  सत्ता की चाभी मिलती है। वैसे ब्राह्मण समाज के कद्दावर नेता हरिशंकर तिवारी इस बार सपा का दामन थाम चुके हैं। भाजपा ने अपने राज्य स्तर के दो ब्राम्हण नेता उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा एवं कानून मंत्री ब्रजेश पाठक को इस काम में लगाया है, मगर ये कितना कामयाब होंगे वह वक्त ही बताएगा।

यूपी के वरिष्ठ भाजपा नेताओं का कहना है कि राष्ट्रीय नेतृत्व को बिहार में अपने सहयोगियों के खिलाफ ठोस कदम उठाने की जरुरत है, अन्यथा इसका नकारात्मक असर पड़ सकता है। वैसे इन सहयोगियों का यूपी में कोई आधार नहीं है।

बहरहाल यूपी चुनाव की कमान एक बार फिर अमित शाह थामने जा रहे हैं। इसी को ध्यान में रखकर उनका सघन कार्यक्रम तय किया गया है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में शाह के प्रभारी महासचिव के रूप में राजग गठबंधन को 80 लोकसभा सीटों में से 73 सीटें मिली थी। उसी तरह 2017 के विधानसभा चुनाव में उनके नेतृत्व में राजग गठबंधन को 325 सीटें मिली।

हालांकि वर्ष 2019 के  लोकसभा चुनाव में सीटों का ग्राफ 80 से गिरकर 67 रह गया। इसी जीत को बरकरार रखने के लिए भाजपा ने एक बार फिर गृहमंत्री अमित शाह को उतारा है।