चिन्मय दत्ता, चाईबासा, झारखंड
भारतीय स्वाधीनता संग्राम के नायक और मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी राजे भोंसले का जन्म पुणे के पास स्थित शिवनेरी दुर्ग में शक्तिशाली सामंत राजा शाहजी राजे भोंसले के घर 19 फरवरी 1623 को जन्म हुआ। इनकी मां प्रतिभाशाली जीजाबाई ने भगवान शिवाय के नाम पर इनका नाम शिवाजी रखा।
इस कुशल और प्रबुद्ध सम्राट के चरित्र पर माता-पिता का बहुत प्रभाव पड़ा। बचपन माता के मार्गदर्शन में बीता जहां माता ने इनको युद्ध की कहानियां और उस युग घटनाओं के बारे में बताया जिसमें रामायण और महाभारत की कहानियां प्रमुख होती थी जिनका शिवाजी पर गहरा असर पड़ा। इनके हृदय में स्वतंत्रता की लौ प्रज्ज्वलित हो गई फिर इन्होंने स्वामिभक्त साथियों को संगठित किया। शुक्राचार्य और कौटिल्य को अपना आदर्श मानते हुए इन्होंने प्राचीन हिंदू राजनीतिक प्रथाओं को पुनर्जीवित किया और फिर मराठी और संस्कृत को राजकाज की भाषा बनाया।
10 नवम्बर 1659 को प्रतापगढ़ का युद्ध हुआ जिसमें शिवाजी की सेना ने बीजापुर के सल्तनत की सेना को हरा दिया जिसके बाद रायगढ़ में 1674 को इनका राज्याभिषेक हुआ और ये छत्रपति बने और इन्होंने पश्चिम भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखने के बाद अष्टप्रधान मंडल की स्थापना की और स्वतंत्र शासक की तरह इन्होंने अपने नाम का सिक्का चलवाया जिसे शिवराई कहते थे। यह सिक्का संस्कृत भाषा में था। ये एक धर्मपरायण हिंदू शासक ही नहीं धार्मिक सहिष्णु थे इनके साम्राज्य में हिंदू पंडितों की तरह मुसलमान संतो और फकीरों को भी सम्मान प्राप्त था।
3 अप्रैल 1680 को इनका प्राणांत हो गया। इनके बारे में एक पुस्तक ‘गनिमी कावा’ लिखी गई है। बाल गंगाधर तिलक ने राष्ट्रीयता की भावना के विकास के लिए शिवाजी राजे जन्मोत्सव की शुरुआत की है।
शिवाजी के जयंती पर पाठक मंच के कार्यक्रम इन्द्रधनुष की 766वीं कड़ी में मंच के सचिव शिवानी दत्ता की अध्यक्षता में यह जानकारी दी गई।
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