साहित्य की सभी धाराओं में समाहित है जानकी वल्लभ शास्त्री की रचनाएं

चिन्मय दत्ता, चाईबासा, झारखंड
आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री का जन्म बिहार के गया स्थित मैगरा गाँव में रामानुग्रह शर्मा के घर 5 फरवरी 1916 को हुआ। इन्होंने केवल 11 वर्ष की उम्र में ही 1927 में बिहार-उड़ीसा की सरकारी संस्कृत परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कर ली और 16 वर्ष की उम्र में शास्त्री की उपाधि प्राप्त कर ली।  यहीं से लेखन कला का प्रारंभ किया इसके बाद काशी हिंदू विश्वविद्यालय चले गए।
1934-35 में इन्होंने साहित्याचार्य की उपाधि स्वर्ण पदक के साथ अर्जित की फिर 1936 में लाहौर में अध्यापन कार्य किया और 1937-38 में मध्य प्रदेश के रायगढ़ में राजकवि रहे। 1944 से 1952 तक गवर्नमेंट संस्कृत कॉलेज में साहित्य विभाग में प्राध्यापक रहने के बाद अध्यक्ष बने और 1953 से 1987 तक बिहार विश्वविद्यालय के रामदयालु सिंह कॉलेज में हिंदी के प्राध्यापक रहे। साहित्य की सभी धाराओं में समाहित रहने वाली इनकी रचनाओं में से इनकी प्रथम रचना ‘गोविन्दगानम्’ है और इनका पहला गीत ‘किसने बांसुरी बजाई’ बहुत लोकप्रिय होने के साथ ही इनका उपन्यास ‘कालिदास’ भी काफी प्रसिद्ध हुआ।  इतना ही नहीं इनके द्वारा रचित गद्य महाकाव्य ‘हंस बालका’ हिंदी जगत की एक अमूल्य निधि है।
1935 में संस्कृत कविताओं के प्रथम संकलन ‘काकली’ के प्रकाशन के बाद तो इन्हें अभिनव जयदेव कहा जाने लगा।  1971 में इनकी रचित महाकाव्य ‘राधा’ प्रकाशित हुई। साहित्य में इनके अमूल्य योगदान के लिए इन्हें बिहार का सर्वश्रेष्ठ और प्रतिष्ठित ‘राजेन्द्र शिखर सम्मान’ से विभूषित करने के साथ उत्तर प्रदेश सरकार ने इन्हें ‘भारत भारती पुरस्कार’ से विभूषित किया। इसके साथ ही इन्हें कई सम्मानों से विभूषित किया गया जिनमें दयावती पुरस्कार, साधना गौतम सम्मान, शिवपूजन सहाय सम्मान शामिल हैं। बिहार के मुजफ्फरपुर जिला स्थित इनके अपने आवास ‘निराला निकेतन’ में 7 अप्रैल 2011 में इनका प्राणांत हो गया।
जानकी वल्लभ शास्त्री की जयंती पर पाठक मंच के कार्यक्रम इन्द्रधनुष की 764वीं कड़ी में मंच की सचिव शिवानी दत्ता की अध्यक्षता में यह जानकारी दी गई।

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