सतनाम पंथ के संस्थापक थे गुरु घासीदास

चिन्मय दत्ता, चाईबासा, झारखंड
तत्कालीन मध्य प्रदेश के रायपुर जिला अंतर्गत गिरौदपुरी गांव में महंगूदास के घर 17 दिसम्बर 1756 को सतनाम पंथ का संस्थापक गुरु घासीदास अवतरित हुए। इनकी माता का नाम अमरौतिन था। बाल्यकाल से ही घासीदास के हृदय में वैराग्य का भाव प्रस्फुटित हो चुका था। इनके सात वचन सतनाम पंथ के ‘सप्त सिद्धांत’ के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
इनके जीवन का लक्ष्य सत्य से साक्षात्कार करना होने के कारण समाज को नई दिशा प्रदान करने में इन्होंने अतुलनीय योगदान दिया। छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर नारायण सिंह पर इनके सिद्धांतों का गहरा प्रभाव पड़ा, और ऐसे ही लाखों लोग इनके अनुयायी हो गए। इनके अनमोल विचार और सकारात्मक सोच हिन्दू और बौद्ध धर्म विचारधाराओं से मिलते हैं। इनका अंतर्ध्यान 1850 में अज्ञात रूप से हो गया।
इनके बाद इनकी शिक्षाओं का प्रचार इनके पुत्र बालकदास ने किया। इनका जीवन-दर्शन युगों तक मानवता का संदेश देता रहेगा। छत्तीसगढ़ प्रशासन ने इनकी स्मृति में सामाजिक चेतना और सामाजिक न्याय के क्षेत्र में गुरु घासीदास सम्मान स्थापित किया है। 1901 जनगणना के अनुसार लगभग 4 लाख लोग सतनाम पंथ से जुड़ चुके थे। सतनामी समाज को 1950 के बाद आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े होने के कारण अनुसूचित जाति में शामिल कर लिया गया। बिलासपुर में 16 जून 1983 में ‘गुरु घासीदास विश्वविद्यालय’ की स्थापना हुई। भारतीय डाक ने 1987 में ‘गुरु घासीदास के सम्मान’ में डाक टिकट जारी किया।
गुरु घासीदास की जयंती पर पाठक मंच के कार्यक्रम इन्दधनुष की 756वीं कड़ी में मंच की सचिव शिवानी दत्ता की अध्यक्षता में यह जानकारी दी गई।

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