युसूफ खान संयोग से बने दिलीप कुमार

चिन्मय दत्ता, चाईबासा, झारखंड
ब्रिटिश भारत के पेशावर में लाला गुलाम सरवर के घर मोहम्मद युसूफ खान का 11 दिसम्बर 1922 को जन्म हुआ था। बाद में इनका परिवार मुम्बई आकर फल का व्यापार करने लगा। इसी दौरान संयोग से युसूफ खान का परिचय देविका रानी से हो गया और देविका ने युसूफ का नाम दिलीप कुमार रखते हुए इन्हें अभिनेता बना दिया।
दिलीप कुमार ने 1944 में फिल्म ‘ज्वार भाटा’ से अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत की और इनकी पहली हिट फिल्म 1947 में प्रदर्शित ‘जुगनू’ थी।  इस फिल्म ने इन्हें हिट फिल्मों के स्टार के श्रेणी में शामिल कर दिया और स्वतंत्र भारत के पहले दो दशकों में देश के नम्बर वन अभिनेता के रूप में स्थापित हो गए। अपनी 1964 में प्रदर्शित फिल्म ‘लीडर’ की पटकथा लेखन इन्होंने किया। जिसका गीत ‘अपनी आजादी को हम हरगिज मिटा सकते नहीं…’ प्रसिद्ध है। आश्चर्य की बात है कि फिल्म कामयाब न होने के बावजूद इन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्म फेयर अवार्ड मिला था। इनकी डबल रोल वाली 1967 में बनी फिल्म ‘राम और श्याम’ की लोकप्रियता अब भी है।
इनका नाम सबसे ज्यादा पुरस्कार पाने वाले भारतीय अभिनेता के रूप में ‘गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ में शामिल है। इसके साथ ही आठ बार फिल्म फेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार का कीर्तिमान इनके नाम है। भारत सरकार से 1991 में पद्म भूषण से विभूषित होने के बाद 1995 में दादा साहेब फाल्के अवार्ड अपने नाम किया वहीं, 2015 में पद्म विभूषण से सम्मानित हुए। सफलता के सफर पर नये आयाम और सम्मान हासिल करते हुए 7 जुलाई 2021 में इनका प्राणांत हो गया।
दिलीप कुमार की जयंती पर पाठक मंच के कार्यक्रम इन्द्रधनुष की 755वीं कड़ी में मंच की सचिव शिवानी दत्ता की अध्यक्षता में यह जानकारी दी गई।

 

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