इतिहास में नहीं मिला आदिवासियों के नायकों को स्थान।

उषा पाठक, वरिष्ठ पत्रकार।

नयी दिल्ली।

आजादी के आंदोलन व नवीन राष्ट्र के निर्माण में महती भूमिका अदा करने वाले आदिवासी समुदाय के शूरवीरों एवं नायकों को इतिहास के पन्नों में उचित स्थान नहीं मिल पाया है। यह तथ्य यहां आईआईटी के सीनेट हाल में गत दिनों संपन्न विद्वत जनों की बैठक में उभरकर सामने आया। आजादी के 75 वर्षो में हजारों करोड़ों रुपये खर्च के बावजूद यह संयोग कहिये या साजिश लेकिन इतना तय है कि इस समुदाय के नायकों की अमर गाथा इस तरह से दफन हो गयी कि उनके वंशजो को भी शायद अब याद न हो।

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की ओर से “जनजातीय समुदाय एवं विश्वविद्यालयों में  अनुसंधान” विषय पर आयोजित इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पद्मश्री जे.के.बजाज थे। इस अवसर पर आयोग के अध्यक्ष हर्ष चौहान के अलावा देश के 70 विश्वविद्यालयों के कुलपति एवं अन्य विद्वत जन मौजूद थे।

इस कार्यक्रम में हिस्सा ले रहे जाने माने शिक्षाविद एवं राजीव गांधी सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो.साकेत कुशवाहा ने बातचीत में कहा कि बिरसा मुंडा अग्रिम पंक्ति के स्वतंत्रता सेनानी थे और उन्होंने आंदोलन में अहम् भूमिका निभाई थी। उन्हें भगवान बिरसा भी कहा जाता है लेकिन इतिहास में जिस तरह का स्थान उन्हें मिलना चाहिये वैसा नहीं मिला है। ऐसे कई नायकों की अमर गाथा इतिहास के पन्नों से गायब है।

डॉ.कुशवाहा ने कहा कि देश के झारखंड,मध्यप्रदेश, राजस्थान,उड़ीसा, महाराष्ट्र एवं पूर्वी क्षेत्र में आदिवासियों की संख्या काफी है,लेकिन उन्हें समुचित स्थान नहीं मिल सका।उन्होंने कहा कि उनके विश्वविद्यालय की ओर से इस दिशा में कई कदम उठाये गए हैं। डॉ.कुशवाहा ने कहा कि आदिवासियों की सभ्यता एवं संस्कृति अति प्राचीन है। इनका राष्ट्र निर्माण एवं आजादी में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने कहा कि इनके इतिहास को संजोने का काम आजादी के इस अमृत महोत्सव वर्ष में किया जा रहा है। इस वर्ग से श्रीमती द्रोपदी मुर्मू जी का राष्ट्रपति बनना गौरव की बात है।

 

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