सारिका झा
नदी, पहाड़, झरने, घने खूबसूरत पेड़ आदि जहां कहीं भी हों हम छुट्टियों में परिवार, दोस्त या फिर खुद के साथ वहां जाने का मन बना लेते हैं और खुश होते हैं। यह खुशी प्रतिदिन होने वाली हमारी थकान को कम करने का काम करती है। वाकई किसी ने सच कहा है कि स्वस्थ रहना है तो घूमते रहिये। खासकर पहाड़ों की हरी-भरी वादियां जिंदगी में फिर से जोश भरने का काम करती हैं।
यही वजह है कि शहरों, महानगरों में रहने वाले लोग पूरे साल की छुट्टियों में घूमने की योजना पहले ही तैयार कर लेते हैं। इनमें मई-जून का महीना सर्वाधिक लोकप्रिय है, जब अधिकांश लोग शिमला, मनाली, मसूरी आदि जैसी खूबसूरत जगहों का रूख करते हैं।
इन दो महीनों में एक साथ इतने पर्यटकों के पहुंचने पर होटल, रेस्तरां, और पर्यटक स्थल पूरी तरह से भर जाते हैं। एक ओर स्थानीय लोगों के लिये कमाई का महीना है, वहीं कई ऐसे भी हैं जो यह दो महीने पहाड़ों पर आने से बचने की सलाह देते हैं। दरअसल, पिछले कुछ वर्षों में मैदानी इलाकों की तरह इन पहाड़ी वादियों में भी तापमान में वृद्धि देखी जा रही है। उदाहरणस्वरूप मसूरी का मशहूर मॉल रोड जून के महीने में अब ठंड का वह अहसास नहीं दे रहा जो पहले यहां खड़े होने पर प्रतीत होता था।
सच मायने में मसूरी की यह वो जगह है, जहां से खूबसूरत पहाड़ों को देखना, उसकी उंचाई को महसूस करना और उसके साथ अपनी मनचाही तस्वीर निकालना हर सैलानी की इच्छा होती है। यहां आये पर्यटक आज भी ऐसा ही करते हैं, मगर उनके दिल तक पहुंचने वाली ठंडक जैसे जून के महीने में गायब हो रही है।
इस बारे में मॉल रोड, गांधी चौक पर वर्षों से चटपटे मुरमुरे बेचने वाले रामस्नेह राठौर कहते हैं कि देहरादून से मसूरी आये लम्बा वक्त हो गया। इसी कमाई से बच्चों को पढ़ाया, शादी की, मगर अब यहां से कुछ साल बाद वापस लौट जाउंगा। यह कहते हुए थोड़े उदास होते हैं, मई-जून में पर्यटक इतनी गाड़ियां लेकर यहां आते हैं कि प्रदूषण का असर इस खूबसूरत जगह पर पड़ने लगा है।
विक्रेता ने इस बात का भी दावा किया कि यह हाल रहा तो आने वाले कुछ सालों में पर्यटक यहां आना कम कर देंगे। उन्होंने लोगों से यह अनुरोध किया कि केवल दो महीने ही नहीं बल्कि पूरे साल इन जगहों को भ्रमण करने का लुत्फ उठा सकते हैं। ऐसा करना न केवल आपको भीड़-भाड़ से दूर करेगा बल्कि आपकी सैर काफी किफायती हो सकती है।
सचमुच अगर गौर करें तो पहाड़ों पर होने वाले बदलाव के सबसे बड़े दोषी में वे पर्यटक भी शामिल हैं, जो वहां जाकर चैन और सुकून पाना तो चाहते हैं, मगर इस बात से बेखबर होते हैं कि उन्होंने बदले में उस खूबसूरत वादी को क्या दिया है। तेज दौड़ती गाड़ियों का प्रदूषित धुआं, प्लास्टिक की बोतलें, प्लास्टिक की थैलियां जिन्हें हम बड़ी ही लापरवाही से वहां छोड़ते हैं, वह वातावरण और जलवायु को बदलने पर मजबूर कर रहे हैं।
ऐसे में अगर आपदा आ गई तब सारा दोष सरकारी इंतजामों पर मढ़ते देर नहीं लगती। सभी ज्ञानी और चिंतक बन जाते हैं। जबकि सच्चाई यही है कि खूबसूरत जगह को बिगाड़ने में हमारी बड़ी भूमिका है। अब सवाल यह भी है कि मई-जून की छुट्टियां कैसे और कहां बिताएं। इसका जवाब यही है कि यह महीने अगर आप घर पर व्यतीत नहीं करना चाहते, घूमने-फिरने के कायल है, तब उन जगहों की ओर रूख करें जो उतने मशहूर नहीं हैं, मगर खूबसूरती में किसी मायने में कम नहीं हैं। ऐसा करने से जहां पर्यटन के नये द्वार खुलेंगे वहीं आपको भीड़-भाड़ से दूर शांत वातावरण नयेपन का अहसास दिलायेगा।
पुनश्चः सभ्यता, संस्कृति और बेमिसाल खूबसूरती से भरे हमारे देश में पर्यटन की इतनी संभावनाएं हैं कि उसे तलाश करने के लिये भी एक खूबसूरत नजर की दरकार है।