अग्निपथ…
कुछ साल पहले तक यह शब्द सुनते ही मन में पहली छवि आती थी विजय दीनानाथ चौहान यानी महानायक अमिताभ बच्चन की। फिर उनकी जगह ले ली रऊफ लाला (ऋषि कपूर), कांचा चीना (संजय दत्त) और दूसरे विजय दीनानाथ चौहान (ऋतिक रोशन) ने।
यह अग्निपथ एक बार फिर चर्चा में है, लेकिन इस बार इसमें कोई विजय दीनानाथ चौहान नहीं हैं। यह अग्निपथ केवल विजय के लिए है और यह विजय होगी संपूर्ण समाज और राष्ट्र की।
चौंकिए मत…
हम बात उसी अग्निपथ योजना की कर रहे हैं, जिसकी घोषणा हाल ही में सरकार ने की है। घोषणा को जानने-सुनने से यदि किसी कारणवश आप चूक भी गए होंगे, तो भी इसके विरोध का शोर आप तक अवश्य पहुंचा होगा। संभव है कि घोषणा से अधिक शोर विरोध में सुनकर आप भी इस योजना को लेकर कोई एकतरफा राय बनाने लगे होंगे। यह भी हो सकता है कि कहीं मन में आप यह तो मान रहे हैं कि यह योजना गलत नहीं है, लेकिन इसे गलत सिद्ध करने में जुटे लोगों को उत्तर भी नहीं दे पा रहे हैं।
इन दोनों ही परिस्थितियों में इस योजना और इसके संभावित प्रभाव को विस्तार से जान लेना आवश्यक है।
अग्निपथ योजना…
इसके अंतर्गत सरकार ने युवाओं को भारतीय सेना के तीनों अंगों यानी वायुसेना, थलसेना और नौसेना में चार वर्ष के लिए सेवा का अवसर देने की पहल की है। इसके बाद योग्य और इच्छुक युवाओं को सेना में पूर्णकालिक नियुक्ति का भी अवसर मिलेगा।
घोषणा के स्वरूप को समझते हैं।
17.5 से 21 वर्ष (पहले साल 23 वर्ष) की उम्र तक के युवा अग्निपथ योजना के अंतर्गत आवेदन कर सकेंगे। शैक्षणिक योग्यता 10वीं और 12वीं पास की होगी। मानकों के आधार पर 46,000 युवाओं को चयनित किया जाएगा। उन्हें कुल चार साल सेना में रहने का अवसर मिलेगा। इसमें पहले छह महीने ट्रेनिंग के लिए होंगे। पूरे चार साल के दौरान इस योजना के तहत चुने गए अग्निवीरों को तय वेतन मिलेगा। वे सैनिकों को मिलने वाले भत्तों आदि के भी पात्र होंगे। किसी अप्रिय स्थिति में बीमा व अन्य जरूरी प्रावधान भी किए गए हैं।
योजना की घोषणा के बाद से ही इसका विरोध भी शुरू हो गया है। बड़ी भीड़ सड़कों पर निकल आई है। ट्रेनों और बसों में आग लगाई जा रही है। और स्वाभाविक तौर पर बहुत से नेता भी इसमें हाथ सेंक रहे हैं।
विरोध करने वालों का कहना है कि इससे सेना में समर्पण भाव कम होगा। साथ ही यह भी चिंता सता रही है कि चार साल बाद सेना से बाहर आने के बाद वह युवा क्या करेगा। उसका जीवन अनिश्चितताओं से घिर जाएगा। उसके लिए अवसर कम हो जाएंगे।
क्या सच में ऐसा होने वाला है?
कदापि नहीं।
सरकार ने सात बिंदुओं में उन सभी मिथकों को गलत सिद्ध किया है, जिनके बहाने आग भड़काई जा रही है। इसमें एक बिंदु सेना में समर्पण भाव से भी जुड़ा है। सेना के समर्पण भाव पर प्रश्न उठा रहे लोग वस्तुत: सेना के मूल्यों का अपमान कर रहे हैं। यह उन लोगों का समूह है जो सेना की वर्दी का अर्थ नहीं समझता है। सेना की वर्दी वास्तव में जीवनमूल्य होती है। इस वर्दी को पाने का प्रयास वही करता है, जो इसके लिए समर्पित होने का सामर्थ्य रखता है। कम समय के लिए वर्दी मिलने से यह समर्पण कम नहीं हो सकता। सरकार ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि आने वाले वर्षों में अग्निपथ योजना के तहत होने वाली नियुक्तियों की संख्या सेना में आमतौर पर होने वाली नियुक्तियों से तीन गुना तक कर दी जाएगी। यानी पहले यदि हर साल 50 हजार युवाओं को सेना में जाने और देश की सेवा करने का अवसर मिलता था, तो आगे 1.5 लाख युवाओं को यह अवसर मिल सकेगा।
सरकार ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि सेना से आने के बाद इच्छुक अग्निवीरों को सीएपीएफ यानी केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों, असम राइफल्स और राज्य पुलिस बलों की भर्ती में प्राथमिकता दी जाएगी। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश सरकार ने भी कहा है कि राज्यों में पुलिस की नियुक्ति में अग्निवीरों को वरीयता दी जाएगी। आगे की पढ़ाई के लिए ब्रिजिंग कोर्स से लेकर कारोबार के लिए वित्तीय पैकेज और बैंक से कर्ज तक की व्यवस्था की जाएगी। इसके अलावा भी सरकार ने कई बिंदुओं पर स्थिति स्पष्ट की है। वास्तव में समाधान की इच्छा रखने वालों के लिए यह पर्याप्त होगा।
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अब हम बात करते हैं कुछ अन्य तथ्यों की, जो इस लेख के विषय की ओर लेकर जाएंगे।
जैसा कि हमने प्रारंभ में ही कहा है कि यह अग्निपथ समाज की विजय का पथ है।
अब ऐसा कहने के पीछे के कारण को समझते हैं।
इसके लिए हमें एक बात समझने की आवश्यकता है। अग्निपथ सैन्य सुधार का कदम नहीं है, यह समाज को सुधारने का कदम है।
जब हम फैसले को इस दृष्टि से देखेंगे, तभी इसके वास्तविक प्रभाव को समझ सकेंगे।
इस योजना का वास्तविक लाभ मात्र वे 25 प्रतिशत अग्निवीर नहीं हैं, जो सेना में पूर्णकालिक हो जाएंगे, अपितु इसका वास्तविक लाभ उन 75 प्रतिशत अग्निवीरों से जुड़ा है, जो बाहर आएंगे।
स्वयं से यह प्रश्न कीजिए कि चार साल तक सेना के मूल्यों को जीकर समाज में आया युवा क्या इस समाज के लिए किसी उपलब्धि से कम होगा?
अग्निपथ योजना में सेना में जाने वाले युवक की उम्र 18 से 21 साल के बीच होगी। यह हम सब जानते हैं कि किसी युवा के वैचारिक बिखराव या वैचारिक सुदृढ़ता, दोनों ही दृष्टि से यह आयु सर्वाधिक संवेदनशील होती है। इस आयु में यदि उसे सैन्य अनुशासन और राष्ट्रप्रेम के भाव को जीने का अवसर मिलेगा, तो क्या उसके पूरे जीवन की दिशा सही नहीं हो जाएगी?
यही नहीं, सेना से आने के बाद वह 25 साल या उससे कम उम्र का ऐसा युवा होगा जो आर्थिक रूप से अपने समकक्ष बहुत से युवाओं से अधिक सक्षम होगा। कम से कम लगभग 12 लाख की एकमुश्त राशि उसके पास होगी, जो उसके जीवन को बदलने में सहायक होगी।
वह यदि आगे की पढ़ाई करेगा, तो उसके बाद जिस भी नौकरी या व्यवसाय में जाएगा, क्या किसी अन्य की तुलना में उसका समर्पण भाव अधिक नहीं होगा?
यदि वह पुलिस का हिस्सा बनेगा, तो क्या पुलिस बल में सैन्य अनुशासन का भाव नहीं आएगा? क्या सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके ऐसे पुलिसकर्मी पूरे पुलिसबल के प्रति समाज के विश्वास को और सुदृढ़ करने का माध्यम नहीं बनेंगे?
आज भी सेना का अनुशासन और वहां से मिले राष्ट्रप्रेम के भाव की कोई तुलना नहीं की जा सकती है, लेकिन उस अनुशासन का बहुत ज्यादा लाभ समाज नहीं ले पाता है। कारण स्पष्ट है कि एक सैनिक उम्र के जिस पड़ाव पर समाज में वापस आता है, तब तक वह स्थितियों को बहुत प्रभावित करने में सक्षम नहीं रह जाता है। इसके बाद भी हम उस परिवार के आदर्श और अनुशासन को उदाहरण की तरह ही प्रस्तुत करते हैं, जिसमें कोई रिटायर्ड सैन्यकर्मी हो।
आज से कुछ साल बाद उस समाज की परिकल्पना कीजिए, जहां कई लाख ऐसे युवा होंगे, जो सेना का हिस्सा रह चुके होंगे। उनके पास सेना का अनुशासन भी होगा और समाज में परिवर्तन करने का सामर्थ्य भी। क्या ऐसे अनुशासित युवाओं से भरा समाज आपको अब की तुलना में अधिक सुरक्षित नहीं लगता है?
अग्निपथ योजना वस्तुत: सेना को ही युवा करने का कदम नहीं है, बल्कि यह सक्षम, सुदृढ़ और अनुशासित युवाओं से भरा समाज बनाने का कदम है। यह मूल्यों से भरा एक ऐसा समाज बनाने की पहल है, जिसकी नींव सैन्य अनुशासन की मजबूत ईंटों से तैयार होगी।
इस अग्निपथ पर चलकर निसंदेह समाज और राष्ट्र की विजय होगी।