स्वाधीनता के प्रबल समर्थक थे भारतीय पत्रकारिता के जनक रामानन्द चटर्जी

चिन्मय दत्ता, चाईबासा, झारखंड

स्वाधीनता के प्रबल समर्थक भारतीय पत्रकारिता के जनक रामानन्द चटर्जी का जन्म ब्रिटिश भारत के बंगाल स्थित बांकुड़ा जिले के पाठक पारा गांव में 29 मई 1865 को मध्यम वर्गीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था। पिता श्रीनाथ चट्टोपाध्याय और मां हरसुंदरी देवी ने प्राथमिक शिक्षा के लिए इनका नामांकन बांग्ला माध्यम विद्यालय में कराया।

बचपन में इन्हें कविता बहुत पसंद थी। रंगलाल बंद्योपाध्याय की कविताओं के माध्यम से यह देशभक्ति की ओर आकर्षित हुए। इन्होंने वर्ष 1875 में बांकुड़ा बंगा विद्यालय छात्र-छात्रवृति परीक्षा उत्तीर्ण की।

1883 में बांकुड़ा जिला स्कूल से प्रवेश परीक्षा पास की और उच्च शिक्षा के लिए कलकत्ता पहुंचे 1885 में इन्होंने सेंट जेवियर्स कॉलेज से उत्तीर्ण होकर सिटी कॉलेज में प्रवेश लिया। सिटी कॉलेज में अध्ययन कर 1888 में कोलकाता विश्वविद्यालय में प्रथम श्रेणी आए जिसके फलस्वरूप इन्हें पचास रुपए प्रतिमाह रिपन छात्रवृत्ति मिली।

इनकी सफलता से प्रसन्न होकर प्रोफेसर हेरम्बा चन्द्र मैत्रा ने इन्हें साधारण ब्रह्म समाज के मुखपत्र इंडियन मैसेंजर में सहायक संपादक बनाया। यहीं से इन्होंने पत्रकारिता में अपने कैरियर की शुरुआत की।  1890 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में मास्टर्स पूरा करने के बाद 1893 में इन्होंने लेक्चरर के रूप में सिटी कॉलेज में प्रवेश लिया जहां इनका परिचय जगदीश चन्द्र बोस से हुआ।

रामानन्द चटर्जी, 1897 में बांग्ला साहित्यिक पत्रिका ‘प्रदीप’ के मुख्य सम्पादक बने। ये कलकत्ता से प्रकाशित ‘मॉडर्न रिव्यू’ के संस्थापक, सम्पादक और मालिक थे। इसके अतिरिक्त ये अध्यापक और प्राचार्य के पद पर भी कार्यरत रहे।
इन्होंने 10 मार्च 1934 को युवा छात्रों के एक समूह को पत्रकारिता की भूमिका के बारे में अपने दृष्टिकोण को संक्षेप में बताया।  इन्होंने दुनिया भर के विचारशील लोगों द्वारा तैयार किए गए विचारों और तथ्यों से ज्ञानोपार्जन की बात की।  कलकत्ता में 30 सितम्बर 1943 ये ब्रह्मलीन हो गए।”
रामानन्द चटर्जी की जयंती पर पाठक मंच के कार्यक्रम इन्द्रधनुष की 727वीं कड़ी में मंच की सचिव शिवानी दत्ता की अध्यक्षता में यह जानकारी दी गई।

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