स्वामी विवेकानंद का सम्मान, शताब्दी बाद स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती के नाम

      चिन्मय दत्ता, चाईबासा, झारखंड
“भारत के प्रसिद्ध आध्यात्मिक चिंतक और वेदांत दर्शन के प्रसिद्ध विद्वान स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती का जन्म 8 मई 1916 को केरल स्थित एर्नाकुलम में हुआ। इनका मूल नाम बालकृष्ण मेनन था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय ‘श्रीराम वर्मा व्यास स्कूल’ में हुई जहां से इनकी गिनती आदर्श छात्रों में हुई। इन्होंने 1940 में लखनऊ विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया।

विधि, अंग्रेजी साहित्य एवं दर्शनशास्त्र के गहन अध्ययन के बाद इन्होंने स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के बाद नई दिल्ली के समाचार पत्र ‘नेशनल हेराल्ड’ में पत्रकार के रूप में काम करना शुरू कर विभिन्न विषयों पर लिखने लगे। इसी दौरान वर्ष 1942 में ये आजादी के राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल हो गए।
इन्होंने सारे भारत का भ्रमण करते हुए देखा कि देश में धन संबंधी अनेक भ्रांतियां फैली हैं।  उसका निवारण कर शुद्ध धर्म की स्थापना के लिए इन्होंने ‘गीता ज्ञान यज्ञ’ प्रारंभ किया और 1953 में ‘चिन्मय मिशन’ की स्थापना की।

 इनके प्रवचन तर्कसंगत और प्रेरणादायक होते थे। इन्होंने सैकड़ों सन्यासी और ब्रह्मचारी प्रशिक्षित किए साथ ही उपनिषद, गीता और आदि शंकराचार्य के 35 से अधिक ग्रंथों पर व्याख्यायें लिखी। गीता पर लिखा गया इनका भाष्य सर्वोत्तम माना जाता है।
वर्ष1993 में शिकागो के विश्व धर्म संसद में इन्होंने हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया। इससे एक शताब्दी पहले यह सम्मान स्वामी विवेकानंद के नाम था।  अमेरिका के कैलिफोर्निया में 3 अगस्त 1993 को ये ब्रह्मलीन हो गए।”
स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती के जयंती पर पाठक मंच के कार्यक्रम इन्द्रधनुष के 724वीं कड़ी में मंच की सचिव शिवानी दत्ता की अध्यक्षता में यह जानकारी दी गई।

 

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