अमित तिवारी
कुछ वर्ष पहले जब पत्रकारिता शब्द सुनते थे, तो मन में एक खादी का कुर्ता और पायजामा पहने, कंधे पर खादी का ही झोला लटकाए धीर-गंभीर से व्यक्ति की छवि बनती थी। फिल्मों ने भी पत्रकारों की यही तस्वीर दिखाई। कुछ दशक पहले फिल्मों में अक्सर पत्रकार के रूप में कोई न कोई पात्र रहता ही था। कई फिल्मों में पत्रकारों को क्रांति करते भी दिखाया गया। उस दौर में पत्रकारिता पैशन का पेशा था। इस पेशे में वह आना चाहता था, जिसमें समाज के लिए कुछ करने की ललक रहती थी। कुछ हद तक यह प्रतिष्ठा से जुड़ा पेशा भी था। एक खाली जेब वाले पत्रकार का रुतबा भी किसी अधिकारी से कम नहीं होता था। यह भी सच है कि उस दौर में पत्रकारिता और पैसे के बीच छत्तीस का आंकड़ा होता था।
एक चुटकुला भी खूब सुनाया जाता था। किसी पत्रकार के घर शादी के रिश्ते के लिए लड़की वाले आए थे। उन्होंने पूछा कि लड़का करता क्या है? परिवार वालों ने बताया कि पत्रकार है। तुरंत लड़की के घरवाले बोले- ये सब तो ठीक है, लेकिन घर-खर्च चलाने के लिए क्या काम करता है? यह चुटकुला उस समय के सत्य को दर्शाता है। सामान्य धारणा यही थी कि यदि समर्पित तरीके से पत्रकारिता को जीना है, तो उससे जीवन यापन के लिए भी कमाई नहीं हो पाएगी। फिर समय बदला। वैश्वीकरण का दौर आया और पत्रकारिता ने भी अपना पुराना चोगा उतार फेंका। धीरे-धीरे खादी के कुर्ते की जगह सूट-बूट ने ले ली। कंधे पर लटकते झोले की जगह लैपटॉप बैग ने ले ली। कलम का काम कीबोर्ड करने लगे और कैमरे का काम स्मार्टफोन से चलने लगा।
अब पत्रकारिता सिर्फ पैशन और प्रतिष्ठा ही नहीं, पैसा भी देने लगा। हालांकि इस बात पर लंबा विमर्श किया जा सकता है कि पत्रकारिता से पैसे का जुड़ना कितना सकारात्मक या नकारात्मक है। एक पक्ष है, जो यह मानता है कि पत्रकारिता में पैसा आने के बाद पैशन कम हो गया। अब सिर्फ पैशन के लिए नहीं, बल्कि कमाई के लिए इस पेशे में कदम रखने वालों की संख्या अच्छी-खासी है। अच्छी कमाई कर लेने वाले पत्रकार को प्रश्नवाचक दृष्टि से भी देखा जाता है। ऐसा लगता है, मानो उसने पैसा कमाकर कोई गलती कर दी है। ऐसा सोचना सही नहीं है।
यह सच है कि अब पैसे की चाहत में भी इस पेशे का रुख किया जाता है, लेकिन यह बुरी बात नहीं है। पैसे को भूलकर पेशे में जुड़ पाने का सामर्थ्य बहुत कम लोगों में ही होता है। सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन में यह संभव और सही भी नहीं है। ऐसे में इस पेशे के साथ संपन्नता जुड़ जाने से ऐसे बहुत से लोग भी इस पेशे में आने के लिए प्रेरित होते हैं, जिनमें पैशन तो है, लेकिन जीवन यापन की आवश्यकता उन्हें इस ओर का रुख नहीं करने देती थी। अब ऐसे बहुत से लोगों के लिए भी इस पेशे का दरवाजा खुल गया है। यह सुखद बदलाव है। साथ ही, इस पेशे में आने के बारे में सोचने वाले को भी यह समझकर चलना होगा कि इसके मूल में कहीं न कहीं पैशन ही है। यदि इसके लिए मन में पैशन नहीं होगा, तो वह आनंद नहीं आएगा, जो इस पेशे में आना चाहिए। मन में पैशन है तो यह पेशा पैसा और प्रतिष्ठा दोनों देगा।