कविता ; मृगतृष्णा

जीवन की मृगतृष्णा में मुझे मिल जाता है सचमुच सरोवर मै प्यास भी अपनी बुझा लेता…

कविता ; शाश्वत

ओ सुंगध। तुम अगर अन्न होते तो मैं तुम्हें पकाकर खा जाता कहाँ है इतना धैर्य…

कविता ; ज्ञानी

पर्वत की चोटी पर श्वेत चादर बर्फ की दिखती चट्टान सी । मक्खन सी पिघलती  …

कविता ;भय

  भेड़िया सा मुँह बाए दूर से थोड़ा सा साहस पास गया पाया बिल्ली मरी थी…

कविता ;प्राप्ति

गाँव में घर के सामने पीपल वृक्ष की धनी छाँव में बैठा करता था पगड़ी बाँधकर।…

प्रेम कविता ; भूल गये

प्रेम कविता ; अब शब्द हमारे दिल को बहलाना भूल गये , अब यादों के वो…

कविता ; बस फर्क इतना है —–

सारी धरा के साथ में , तेरे जरा से साथ में , बस फर्क इतना है…

कविता ; हैं अश्रू धरोहर , मीत प्रिये ,

हैं अश्रू धरोहर , मीत प्रिये , हारी बाजी की जीत प्रिये। श्रुति दंत कथाओं में…

प्रेम कविता; इक दिल में भी इक दिल है

  क्यूं बतलाएं सबको कि इस दिल में भी इक दिल है ? नजरों का ये…

कविता ; मिलना मुश्किल होता है

छल का ऐसा ताना बाना मिलना मुश्किल होता है। मुझ जैसा कोई घाघ पुराना , मिलना…