कविता ; मुझको नहीं सताओ

 

क्या हो गई खता ये मुझको जरा बताओ
तुम रूठ करके ऐसे मुझको नहीं सताओ

तेरी कसम न आई कल रात नींद मुझको।
मेरी कसम बता दे क्या नींद आई तुझको ?

खामोश रहके ऐसे दिल पर न जुल्म ढाओ।
तुम रूठ. करके ऐसे मुझको नही सताओ।

आँखों में मेरी , अपनी आँखों को डाल दो तुम
गर हो गई खता तो दिल से निकाल दो तुम

खामोशियों को तोड़ो थोड़ा सा मुस्कुराओ
तुम रूठ करके ऐसे मुझको नहीं सताओ

कल रात की तरह क्या ये रात भी बितेगी ?
तन्हाइयाँ बता क्या तुझको नहीं खलेगी ?

बाँहें तरस रही है बाँहों में झूल जाओ
तुम रूठ करके ऐसे मुझको नहीं सताओ

जब तक मना न लूँगा यूँ ही खड़ा रहूँगा
अब मान जाओ अपनी जिद पर अड़ा रहूँगा

तड़पा बहुत हूँ , मुझको अब और न तड़पाओ
तुम रूठ करके ऐसे मुझको नहीं सताओ

उपर्युक्त पक्तियां बी. एन. झा. की लिखित पुस्तक इन्द्रधनुष से ली गई है।