कविता ; मृगतृष्णा

जीवन की
मृगतृष्णा में

मुझे मिल जाता है
सचमुच सरोवर

मै प्यास भी अपनी
बुझा लेता हूँ

क्योंकि मुझे
मृगतृष्णा

मृगतृष्णा सी
दिखाई पड़ जाती है।

यही है राज मेरी
जिन्दगी से लगाव का

इसलिए है जिन्दगी
मीठी – मीठी ,
अनूठी – अनूठी।

उपरोक्त साहित्यिक रचनाएँ स्वर्गीय बी एन झा द्वारा लिखित इन्द्रधनुष पुस्तक से ली गई है ।

 

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