सफलता

वे छायावादी हैं
दूसरों को लक्ष्य बनाकर

प्रतिदिन मुझ पर
व्यंगवाण चलाते हैं।

ऐसा नहीं कि मैं
छायावाद नहीं समझता

व्यंगवाण को नोंक पर लगा विष
मुझे अन्दर से आंदोलित भी करता है

पर मेरी चमड़ी इतनी हो गई है मोटी
कि इस वाह्य सतह पर आते – आते

विष निष्क्रिय हो जाता है।
और अदृश्य के लिए

मैं बेहद बेशर्म हूँ।
समझकर भी नासमझी का

खूबसूरत अभिनय कर लेता हूँ।
और देखिए न

इस सफलता की कुंजी को
कमर में लटकाकर चलता हूँ।

गर्व से गाते हुए , खूब मुस्कुराते हुए।
किताबी भाषा किताब तक ही

सीमित रहने दो।
चुल्लू भर पानी में कोई

डूबा है आज तक ?
हाँ ये बात अलग है कि

अपने नितान्त अकेलेपन में
मैं सैकड़ों गोते लगा चुका हूँ

इससे भी कम पानी में
बुढ़ापे की ओर खिसकती इस जवानी में

 

उपयुक्त पक्तियां इन्द्रधनुष पुस्तक बी एन झा द्वारा द्वारा लिखी गई हैं।