मनुष्य के लाभ को
धूरी बनाकर
प्रकृतिजन्य को
परिभाषित करने वाला मनुष्य
किसने ये हक दिया तुम्हें ?
गाय को माता कह
पूजते हो इसलिए
कि दूध तुम्हें देती है वह।
उसका दूध है लेकिन
उसके बच्चे हेतु।
और ताड़ व बबूल को
तुम्हें पूजते नहीं देखा है
इसलिए कि आम व जामुन से
न फल हैं उनमें
और न हैं
वट व पीपल सी छाया।
गुलाब पर गीत लिखते हो
नागफनी ने क्या बिगाड़ा है ?
इसलिए परिभाषित करो
समग्र को धूरी बनाकर
डरो प्रकृति से
हो सकता है
आने वाले कल को
तुम जैसा यही विवेक
शेर व चीते को मिल जाये
और वो भी अपने धर्मग्रंथ में
अपने पूज्य की जगह
तुम्हारा नाम लिख दे।
उपयुक्त पक्तियां इन्द्रधनुष पुस्तक बी एन झा द्वारा द्वारा लिखी गई हैं।