गर थोड़ा सा सम्बल मिल जाता मेरी अभिव्यक्ति को

गर थोड़ा सा सम्बल मिल जाता मेरी अभिव्यक्ति को
मैं दुनिया को दिखला देती गर्वित नारी शक्ति को
जब जब पुरुष पराजित होकर कर्म क्षेत्र से विमुख हुआ।
नारी ने सारधा बनकर उत्पीड़न से युद्ध किया।
हाड़ी ने स्वयं शीश काटा , नतमस्तक स्वामी भक्ति को।
जो धीर वीर न कर पाये वो कर्म वती ने कार्य किया ।
मुगलों के बागी तेवर ने भाई बनना स्वीकार किया।
बुद्धि के शस्त्र से अबला ने मज़बूत कर दिया सन्धि को।
गार्गी विदुशी तेजवान लक्ष्मी मरदानी बल की खान
थी तेजस्विनी पद्मारानी पन्ना धाय ममता की शान
शीश झुकाया राणा ने , मीरा की निश्चल भक्ति को

उपयुक्त पंक्तियां रजनी सैनी सहर की लिखित पुस्तक परिधि से पहचान तक से ली गई है।