मैं नितांत अधिकांश अकेली ,सुलझाती अनबुझी पहेली ,

मैं नितांत अधिकांश अकेली ,
सुलझाती अनबुझी पहेली ,
आश्रय कहाँ , कहाँ घर मेरा
सदेहों में घिरा सबेरा।
प्रखर बुद्धि की नारी यदि , निर्णय लेने में है सक्षम
क्यूँ कुटुम्ब के लोग सभी , साबित करते रहते अक्षम
इक सराय की भाँति है सजता अरमानों का रैन बसेरा
मौन रहूँ तो मन आहत हो , मुखरित शब्दों पर बंदिश है
मेरी खुशियों से जाने क्यूँ दुनिया वालों को रंजिश है
मै खटती हूँ दिल जलता है फिर भी जाता नही अंधेरा।

उपयुक्त पंक्तियां रजनी सैनी सहर की लिखित पुस्तक परिधि से पहचान तक से ली गई है।