जाने वाले को भला कौन रोक पाया है?
मुस्तकिल यादों पर खामोशियों का साया है।
बेजुबाँ होंठ हैं , लफ़्ज़ों का तस्सवुर भी नहीं
दिल के जज्बातों पे उसका ही नाम छाया है।
कहीं अनजाने में शिदद्त से वो याद आ जाए
तो यूँ लगता है , हवाओं में पयाम आया है।
दिल ये कहता है कभी उसको भूल जाऊं मैं
उसकी हसरत में हमने खुद को भी मिटाया है।
हमने उसके लिये खुद को तन्हा कर डाला
बचा जो ज़िन्दगी में दर्दो गम का साया है।
उपयुक्त पंक्तियां रजनी सैनी सहर की लिखित पुस्तक परिधि से पहचान तक से ली गई है।