उठ नई पहचान खुद से आज कर ले
सूर्य की इन रश्मियों से मांग भर लें
बन के तेजस्वी मिटा अज्ञान तमका
कोरी भावुकता का आंचल साफ कर ले।
क्या हुआ जो साथ कोई चल न पाया दो कदम
सोच वो अपना नहीं था , और न उसके थे हम
अपने जैसे और दुखियों में , नया तू जोश भर दें।
तू नहीं अक्षित किसी पर , तु प्रबल विद्रोह कर दें
खुद नए इक नीड का निर्माण कर ले।
छिन गया आश्रय तो न विश्राम कर तू मौन रहकर
आसुओं और सिसकियों को सहजता से मार ठोकर
हौसलों से तू बदल दें दुनिया की हर रूढ़ियों को
कुछ नये आदर्श दे जा आने वाली पीढ़ियों को
कर सुशोभित तू सिन्दूरी रवि से मस्तक लाल कर ले।
उपयुक्त पंक्तियां रजनी सैनी सहर की लिखित पुस्तक परिधि से पहचान तक से ली गई है।