तुम्हारा सौन्दर्य

तेरी जुल्फों की रगत को घटाओ ने चुराई है।
तेरे गालों की लाली ही उषा मे भी समाई है।
सभी यह जानते मस्ती छलकते जाम मे होती।
ये उतरे ही नहीं चढ़के मगर ऐसी नहीं होती। .
वो मस्ती जो नहीं उतरे तेरी आँखों ने पाई है।
तेरी जुल्फों की रगत को घटाओं ने चुराई है।
सुफ़ेदी संगमरमर की जहाँ मे मानते सब है।
सुफ़ेदी है मिली कैसे मगर क्या जानते सब है ?
तुम्हारी जिस्म की रंगत ही शायद इन पे छाई है।
तेरी जुल्फों की रगत को घटाओं ने चुराई है।
चलो माना। कशिश होती है कोयल की सदाओं में।
सुनाती है वो मीठी धुन मगर केवल बहारों में।
कशिश उस धुन मे कितनी जो हमेशा तुमने गाई है।
तेरी जुल्फों की रगत को घटाओं ने चुराई है।

उपयुक्त पंक्तियां स्व. विनोदा नन्द झा की लिखित पुस्तक इन्द्रधनुष से ली गई है।