बदनामी का कारण

मैं बाईस साल का छोरा
पूरे मूहल्ले में
लड़कियों के बीच
बदनाम हो गया।
मैं थोड़ा हैरान हुआ
ये कैसा अपमान हुआ ?
परन्तु सुन लिया मैंने
नवयौवनाओं मे हो रही वार्तालाप
एक दिन चुपचाप।
वो बेवाक कहे जा रही थी।
मेरी आत्मा सहे जा रही थी।
सबने समवेत स्वर मे
ऐसे – बताया —–
इसने हमलोगो को
बड़ा ही सताया।
विरह गीत गा गाकर
बेतरह रुलाया।
कभी कभी गीत ये
रोमांटिक भी गाता था।
गीत के ही माध्यम से
मृगनैनी मधुवैनी
हमें कह जाता था।
आत्मविभोर हम हुए जाते थे।
अपनी जवानी पर खूब इतराते थे।
पर दुख इस बात का है।
मिलन या विरह गीत वह
अपनी मस्ती में गाता था।
हमें न सताता था।
कम्बख्त ने कभी भी
हलो भी कहा नहीं
हम पर आँखे फेक कर
सड़क पर चला नहीं
हमलोगों ने जब उसे
बाहों में घेरा
हर ने कहा उसको
तुम हो बस मेरा
तो इस अभद्र ने
जोड़ दिए हाथ
निपोड़ दिए दाँत
इतना तक तो हमने
बर्दाश्त कर लिया।
पर एक दिन इसने
सीमा की पार
हम मान गए हार
इस मुए ने
सरे बाजार मे
हम यौवनाओ को
अपमानित कर डाला।
बहन जी कह डाला।
उपयुक्त पंक्तियां स्व. विनोदा नन्द झा की लिखित पुस्तक इन्द्रधनुष से ली गई है।